राष्ट्रकवि दिनकर को मिले भारत रत्न, पुण्यतिथि पर साहित्यकारों ने उठाई मांग!

बृज दर्शन

दिनकर की कृतियों से हुआ गोष्ठी में काव्यपाठ!

मथुरा! राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की पुण्यतिथि पर आयोजित एक साहित्यिक गोष्ठी में उनकी प्रमुख काव्यकृतियों से काव्यपाठ कर स्थानीय साहित्यकारों ने दिनकर जी को भारत रत्न से सम्मानित किए जाने की मांग उठाई। सदर क्षेत्र की अशोक विहार कॉलोनी में उपेन्द्र त्रिपाठी के आवास पर हिंदी प्रचार सभा के तत्वावधान में आयोजित इस गोष्ठी की अध्यक्षता प्रख्यात सजलकार डॉ.अनिल गहलौत ने व कुशल संचालन हिंदी प्रचार सभा के अध्यक्ष निशेश जार ने किया।


गोष्ठी में विषय प्रवर्तन करते हुए पत्रकार/साहित्यकार उपेन्द्र त्रिपाठी, ‘गरलकण्ठ’ ने दिनकर जी की काव्यकृति, ‘परशुराम की प्रतीक्षा’ से ‘पापी है जो देवता सदृश दिखता है, लेकिन कमरे में गलत हुक्म लिखता है।’,‘रश्मिरथी’ से,‘रे अश्वसेन तेरे अनेक वंशज हैं छिपे नरों में भी।’ तथा ‘कुरुक्षेत्र’ से ‘जिनको भरोसा नहीं भुज के प्रताप का है, बैठते भरोसा किए वे ही आत्मबल का।’ जैसी रचनाओं का काव्यपाठ करते हुए उनसे जुड़े कुछ रोचक प्रसंग प्रस्तुत किए तथा दिनकर जी को भारत रत्न से सम्मानित किए जाने की मांग की।
साहित्यकार संतोष कुमार सिंह ने कहा कि आजादी आंदोलन में विद्रोही कवि रहे दिनकर जी आजादी के बाद देश में राष्ट्रप्रेम की अलख जगाने के लिए राष्ट्रकवि की भूमिका में आ गए। उन्होंने प्रौढ़ साहित्य के साथ-साथ बाल साहित्य पर भी सफलतापूर्वक अपनी लेखनी चलाई। संतोष जी ने सरस्वती वंदना के अतिरिक्त गोष्ठी में दिनकर जी की कविता चांद का कुरता भी प्रस्तुत की।
डॉ.कृष्णावतार उमराव विवेकनिधि ने एक स्वरचित कुण्डलिया के माध्यम से दिनकर जी को हिंदी साहित्य का सरताज बताया। केन्द्र एवं राज्य सरकार द्वारा कई बार सम्मानित साहित्यकार डॉ. दिनेश पाठक शशि ने कहा कि प्रौढ़ साहित्य क्षेत्र में 61 कृतियों के योगदान के अतिरिक्त दिनकर जी ने बच्चों को आनंदित करने वालीं तीन कृतियों, ‘सूरज का ब्याह, मिर्च का मजा तथा धूप छांव’ का सृजन भी किया है। इनकी बाल पद्य कथा, ‘चांद का कुर्ता’ बहुत प्रसिद्ध हुई।
साहित्यकार एवं सेवानिवृत्त प्रोफेसर डॉ.अनिल गहलौत ने कहा कि राष्ट्रकवि दिनकर प्रखर बौद्धिक चिंतक,सुधी समालोचक एवं भाषा मर्मज्ञ भी थे। 19 वर्ष राज्य सभा सदस्य के रूप में देश सेवा करने के साथ-साथ उन्होंने हुंकार,रसवंती,बापू, कुरुक्षेत्र, रश्मिरथी, परशुराम की प्रतीक्षा, उर्वशी तथा लोकायतन’ जैसी कालजयी काव्य कृतियों से माँ सरस्वती का भण्डार भरा अपितु संस्कृति के चार अध्याय जैसे गद्य ग्रंथ भी हिंदी साहित्य को दिए। डॉ.गहलौत ने उर्वशी एवं कुरुक्षेत्र से काव्यपाठ भी किया। गोष्ठी के द्वितीय सत्र में कवियों ने विभिन्न विषयों पर स्वरचित रचनाओं का काव्यपाठ भी किया।
धन्यवाद ज्ञापन उपेन्द्र त्रिपाठी ने किया।

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