ब्रजभाषा साहित्य में सूरदास का काव्य सूर्य के समान- खेमचंद यदुवंशी

बृज दर्शन

गोवर्धन। ‘ब्रजभाषा साहित्य में भक्त सूरदास का काव्य सूर्य के समान है जिसके प्रकाश में वात्सल्य रस की उत्तपत्ति हुई है। उनका काव्य वात्सल्य रस की पूर्ण अनुभूति कराने में आज भी पूर्णतः समर्थ है, हमें उनके काव्य को नई पीढ़ी तक पहुंचना अति आवश्यक है।
उक्त विचार परासौली स्थित भक्त सूरदास की साधना-स्थली ‘सूर कुटी’ पर ब्रज साहित्य परिषद न्यास द्वारा मासिक ब्रजभाषा काव्य-गोष्ठी के आयोजन की अध्यक्षता कर रहे संगीताचार्य डॉ. खेमचन्द यदुवंशी ‘शास्त्री’ ने व्यक्त किये। कार्यक्रम का प्रारम्भ रविन्द्र पाल सिंह राघव द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वन्दना- आज प्रणाम करूं कर जोरिके, पांय पखारुं सरस्वती मैया। से हुआ। इससे पूर्व आमंत्रित अतिथियों द्वारा सूरदास जी की समाधि पर पुष्पांजलि अर्पण कर उन्हें नमन किया गया।
तदोपरान्त सुप्रसिद्ध कवि गोपाल प्रसाद गोप ने ब्रजभाषा गीत- कछु बात काजी ना जाय गांव की मस्ती की तथा समय कौ पहिया घूम रह्यौ,आज आदमी बिना बात चौराहे पै झूम रह्यौ। सुना कर अवतरण को रसमय बना दिया। इसी क्रम में नीम गाँव से पधारे ब्रजभाषा कवि निम्बार्क ने – आयौ बसन्त सब ऋतुअन कौ कन्त, बड़ौ ही सुहानौ और अतिमन भावन है। की प्रस्तुति से वासन्ती अनुभति से सभी को सराबोर कर दिया। इसी क्रम में आशुकवि अनिल बोहरे (हाथरस), श्याम सुन्दर चिंतन (हाथरस) चाचा उदयभानी (अलीगढ़) आदि ने अपनी ब्रजभाषा काव्य रचनायें प्रस्तुत कीं। काव्य-गोष्ठी का सफल संचालन गोपाल प्रसाद उपध्य्याय ‘गोप’आदि उपस्थित थे।

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