माघ चल्यौ फागुन आयौ, मंद-मंद मन मुस्करायो

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गीता शोध संस्थान एवं रासलीला अकादमी वृंदावन में काव्य संगोष्ठी का आयोजन

वृंदावन। शोध संस्थान एवं रासलीला अकादमी वृंदावन के सभागार में बसंत उत्सव पर काव्य संगोष्ठी का आयोजन किया गया।
संगोष्ठी संयोजक ब्रज भाषा के कवि अशोक यज्ञ थे। उन्होंने प्रारंभ में सरस्वती वंदना- मां शारदे चहुं दिस धरा का प्रस्तुत की। साथ ही ब्रज की बोली में गीता के 18 वें अध्याय पर लिखी रचनाएं सुनायीं।


संगोष्ठी में गजल गायक योगेश कुमार शर्मा ने कविता पढी–
राधा माधव की भूमि को नमन है, आजादी के लिए प्राणों की आहुति दी, उन्हे प्रणाम है
उन्होंने गजल प्रस्तुत की– फिरते हैं लोग तमाम महफिले आदिल में…जो मुल्क की आवरू और शान है, वह फौज का जवान है…।
ब्रज भाषा के कवि अटल राम चतुर्वेदी ने गाया- है बसंत की छटा निराली, माघ चल्यौ फागुन आयौ, मंद-मंद मन मुस्करायो….
कवि आत्म प्रकाश महायोगी ने छंद- श्री राम नाम रमे विनातन, राम नाम अमर रसायन पढ़ा।
ब्रज तीर्थ विकास परिषद के ब्रज संस्कृति विशेषज्ञ डा उमेश चन्द्र शर्मा ने ब्रज भाषा कविता पढ़ी-
जा सुख की संतान कहूं, चौखट लगायी द्वार देहरी पुजाई दूसरी रचना- जीवन के बोझन ते नस नस टूट गयी.. और संग की सहेली बोलीं जइयो अकेली मत सुनायी।
मांट के ब्रज भाषा के कवि ओंकार सिंह जायस ने कविता–
अरी तेरी सखी कैसी जोड़ी बनी, राधा गोरी कारौ है संवरिया दोनों ओढे बसंती चुंनरिया सुनायी।
संचालन करते हुए गीता शोध संस्थान की समन्वयक रश्मि वर्मा ने — मेरी भक्ति भावना कौ परमानंद लीजिए, बुलाया श्री चरणों में शरणागति लीजिए
कवि गोपाल शरण शर्मा ने रसखान का सवैया–
जाति पात त्याग कृष्ण प्रेम मगन भयौ और बन आयौ रसिया होरी कौ सुनाया। गीता शोध संस्थान के समन्वयक चंद्र प्रताप सिंह सिकरवार ने महान गीतकार शेलेंद्र की लिखी कविता जलता है पंजाब को सुनाया। संगोष्ठी में मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण के अवकाश प्राप्त चीफ इंजीनियर श्री जायसवाल समेत अन्य गणमान्य मौजूद रहे।

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