जीएलए के विधि संस्थान में वैश्विक व्यवस्था की चुनौतियों पर चर्चा, जुटे 10 देशों के विद्वान

देश यूथ

जीएलए के विधि संस्थान में अंतर्राष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस में आयोजित
मथुरा। जीएलए विश्वविद्यालय, मथुरा के विधि संस्थान में सेंटर फाॅर इंटरनेशनल पाॅलिटिक्स एवं लाॅ एवं इंदिरा गांधी नेशनल ट्राइवल यूनिवर्सिटी के संयुक्त तत्वावधान में दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया। इसमें वैश्विक उदारवादी व्यवस्था एवं उसकी चुनौतियों पर दुनियां के 10 देशों के विद्वानों ने अपने विचार साझा किए।
‘‘उदारवादी व्यवस्था एवं उसकी चुनौतियां‘‘ विषय पर आयोजित अंतर्राष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस में मुख्य वक्ता के तौर पर पेरिस यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर आरनाॅड रेनोवा ने उदारवादी व्यवस्था के वर्तमान चुनौतियां जैसे उग्र राष्ट्रवाद, अमेरिका और चाइना संरक्षणवादी नीतियां एवं अंतर्राष्ट्रीय संस्थानेां की विफलता पर फोकस किया। उन्होंने कहा कि ‘मेक अमेरिका ग्रेट अगेन’ बाई ‘अमेरिका फर्स्ट’। कुछ इसी तरह विश्व के विकसित एवं उभरते देशों के समूह जी-20 ने भी संरक्षणवादी नीतियों को अपनाने पर बल दिया है। यूरोपीय संघ के देशों में खुले व्यापार के प्रति बढ़ता असंतोष यह स्पष्ट करता है कि सम्पूर्ण पश्चिमी जगत वैश्वीकरण के विरोध में लामबंद हो चुका है।
स्विटजरलैंड के ज्यूरीक यूनिवर्सिटी के प्रो. स्टिफिन वाॅल्टर ने कहा कि आज इस उदारवादी व्यवस्था के संरक्षक देश ही वैश्वीकरण को चुनौती दे रहे हैं। यूएस एवं यूके दोनों वैश्वीकरण के प्रति उभरते हूए रोश के लिए जिम्मेदार हैं। जहां यूएस ने डब्लूएचओ एंड एमडब्लूटीओ को कमजोर करने का कार्य किया है, तो वहीं यूके यूरोपीय यूनियन (ईयू) से अलग होकर अन्तर्राश्ट्रीय संस्थानों को गहरी चोट पहुंचाई है। साथ ही यूरोपीय जनमानस में अप्रवासियों के प्रति बढ़ता अंसतोश राजनैतिक है स्वाभाविक नहीं।
कॉन्फ्रेंस के सेशन की अध्यक्षता करते हुए रूस के केमेरेवो यूनिवर्सिटी के प्रो. किरील सेवलिन एवं दक्षिण अफ्रीका स्काॅलर रीयाॅन फन्डर मरवे ने कहा कि उदारवादी व्यवस्था अमेरिकी प्रधान है, जो कि चाइना और रूस जैसे देशों के लिए उपयुक्त नहीं है।
ब्राजील की सावोपोलो यूनिवर्सिटी के प्रो. कैसला ने भारतीय चिंतक कौटिल्या के योगदान को अंतर्राष्ट्रीय विधि पर याद किया। उन्होंने कहा कि अंतर्राष्ट्रीय विधि मूलतः यूरोपीयन अवधारणा न होकर इसमें भारतीय मनीषी कौटिल्या के सप्तांक सिद्धांत का मूल योगदान है। प्रो. कैसला ने कहा कि वैश्विक उदार व्यवस्था में भारत की लोकतांत्रिक सोच एवं वैश्विक शांति की अवधारणा इस उदारवादी व्यवस्था को हमेशां मजबूती प्रदान की है।
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रो. राजन कुमार ने कहा कि चीन जहां आर्थिक रूप से इस उदारवादी व्यवस्था से सबसे ज्यादा लाभान्वित हुआ है, वहीं राजनीतिक तौर से दुनियां के अन्य देशों जैसे रूस, मध्य एवं पश्चिम एशिया के देशों के साथ मिलकर 1945 के बाद स्थापित इस उदारवादी व्यवस्था को गहरी चोट दी है।
अंतर्राष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस में भारत सहित दुनियां के 10 देशों से 100 स्काॅलर ने सहभागिता दर्ज की, जिसमें यूके से डाॅ. वेन ड्यूक, ब्राजील से डाॅ. ईमाइलो, डाॅ. जैन, डाॅ. कैस्यो ने अपने शोध पत्र प्रस्तुत किए। भारत से इंदिरा गांधी नेशनल ट्राइवल यूनिवर्सिटी के कुलपति प्रो. प्रकाश मणी त्रिपाठी मुख्य वक्ता के तौर पर रहे। आईआईएम इंदौर के प्रो. वैंकट रमन एवं दिल्ली विष्वविद्यालय की डाॅ. आमना मिर्जा ने सेषन की अध्यक्षता की।
इस दो दिवसीय कॉन्फ्रेंस की शुरुआत विधि संस्थान इंस्टीट्यूट ऑफ़ लीगल स्टडीज एंड रिसर्च के डीन प्रो. अविनाश दाधीच ने सभी अतिथियों का स्वागत अपने वक्तव्य के साथ किया। उन्होंने कहा कि भारत सहित समूचे विश्व की व्यवस्थाओं और चुनौतियों पर प्रकाश डालने के लिए ऐसे कार्यक्रम समय-समय पर आयोजित होते रहने चाहिए, जिससे छात्रों में व्यापक दृष्टि विकसित होगी। जीएलए के सेंटर फाॅर इंटरनेशनल पाॅलिटिक्स एवं लाॅ के प्रमुख डाॅ. संदीप त्रिपाठी ने कॉन्फ्रेंस का संचालन करते बोले कि इस कॉन्फ्रेंस से हमें वैचारिक तौर पर बहुत कुछ सीखने को मिला। कार्यक्रम के अंत में इंदिरा गांधी नेशनल ट्राइवल यूनिवर्सिटी राजनीति विज्ञान के विभागाध्यक्ष प्रो. अनुपम शर्मा ने सभी अतिथियों को धन्यवाद दिया।

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