-जीएलए के पीएचडी शोधकर्ता द्वारा सुझायी गयी विधि से अब पौधों से निकलेगा कम समय और कम कीमत में अधिक औषधीय पदार्थ
मथुरा। जीएलए विश्वविद्यालय, मथुरा के फार्मेसी विभाग के पीएचडी षोधकर्ता ने पौधों से प्राकृतिक उत्पाद यानि द्वितीय मेटाबोलाइट्स निकालने की एक आसान विधि को सुझायी है। षोधकर्ता द्वारा सुझायी गयी विधि का पेटेंट भी पब्लिष हो चुका है।
शोधकर्ता कृष्ण कुमार अग्रवाल ने ‘ए मैथड फॉर एक्सटेंक्टिंग नेचुरल प्रोडक्ट्स फ्रॉम प्लांट मैटेरियल‘ विशय पर जानकारी देते हुए बताया कि अधिकतर पौधों की ऐसी प्रजातियां होती, जिनके मेटाबोलाइट्स यानि प्राकृतिक उत्पाद दवाओं, स्वाद, रंगद्रव्य आदि के रूप में प्रयोग में लिए जाते हैं। अब तक देखा गया है कि पौधों की विभिन्न प्रजातियों से द्वितीय मेटाबोलाइट को निकालने के लिए मैसीरेषन, पाचन, काढ़ा, जलसेक, अंत स्राव, सॉक्सलेट निष्कर्षण, सतही निष्कर्षण और माइक्रोवेव आदि तकनीकियों का प्रयोग किया जाता है। इन निश्कर्शों के माध्यम से मेटाबोलाइट निकालने में खर्च और समय भी अधिक मापा गया है।
इस मेटाबोलाइट निकालने की कीमत और समय से चिंतित होकर पीएचडी शोधकर्ता कृष्ण कुमार ने जीएलए फार्मेसी विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डा. योगेश मूर्ति के दिशा-निर्देशन में पौधो से निकालने वाले सेकेंडरी मेटाबोलाइट्स की तकनीकी विकसित की है। इस तकनीकी की मदद से अब कम समय में ज्यादा सेकेंडरी मेटाबोलाइट्स को पौधों से निकाला जा सकेगा। सेकेंडरी मेटाबोलाइट्स पौधों के अंदर पाए जाने वो रसायन होते हैं, जो कि पौधों की फार्माकोलॉजिकल एक्टिविटी औषधीय गुण के लिए जिम्मेदार होते हैं। इस पेटेंट में दो तकनीकियों जैसे की मेसरेशन और अल्ट्रासोनिकेशन को एक साथ जोड़ कर काम किया गया है, जिसकी वजह से समय और खर्चा बचता है और पौधों के रसायनों को निकाला जा सकता है।
डा. योगेश मूर्ति ने बताया कि यह पेटेंट आने वाले समय में साइंटिस्ट, शोध विधार्थी, औषधीय पौधों की प्रोयागशाला में शोध कर रहे शोधकर्ताओं के लिए मील का पत्थर साबित होगा। क्योंकि इस शोध की वजह से अब कम समय और कम खर्चे पर ज्यादा सेकेंडरी मेटाबोलिट्स को पौधों के विभिन्न भागों से बाहर निकाला जा सकेगा और उनकी औषधीय गुणवत्ता पर काम किया जा सकेगा।
इस शोध कार्य के लिए जीएलए फार्मेसी विभाग के निदेशक प्रो. अरोकिया बाबू और डीन रिसर्च प्रो. कमल शर्मा ने शोधकर्ता डा. योगेश मूर्ति और कृष्ण कुमार अग्रवाल को बधाई दी और भविष्य में ऐसे ही रिसर्च करने के लिए प्रोत्साहित किया।