जब बीसीसीआई की प्राथमिकता केवल आईपीएल, तो खिलाड़ियों में कहां से जाएगी प्रतिबद्धता
एक्सपर्ट कॉर्नर-
एशिया कप के सुपर फोर मुकाबलों में पहले पाकिस्तान और फिर श्रीलंका से मिली हार के बाद भारत की फाइनल में पहुंचने की संभावनाएं बिल्कुल खत्म हो गया है। स्वाभाविक है कि भारत ही नहीं, भारत से बाहर के क्रिकेट एक्सपर्ट टीम की स्ट्रेटेजी पर निशाना साध रहे हैं। भारतीय टीम के खराब प्रदर्शन से कई सवाल उठ रहे हैं, जो लाजिमी भी हैं। ऐसे में अगर इन सवालों के वाजिब जवाब न मिले, तो फिर भारतीय टीम आईसीसी टूर्नामेंटों में ऐसे ही कमजोर प्रदर्शन करती रहेगी।
सबसे पहला सवाल उठ रहा है, टीम के चयन पर। लोग कह रहे हैं कि टीम में एक पेसर की कमी थी या एक बल्लेबाज की कमी थी। यह सच है कि टीम कंबिनेशन कुछ अजीब था, जैसे टी-20 के सुपर फ्लॉप ऋषभ पंत के लिए आक्रामक बल्लेबाज दिनेश कार्तिक को क्यों बाहर बिठाया। टेस्ट में ऋषभ पंत ठीक हैं, लेकिन टी-20 में दिनेश कार्तिक उनसे कहीं बेहतर हैं। पाकिस्तान के खिलाफ अच्छी गेंदबाजी करने वाले रवि बिश्नोई को बाहर करने की जरूरत क्या थी, केवल वही तो थे जो पाकिस्तान पर अंकुश लगाए हुए थे।
लेकिन सच बताईये, जो बल्लेबाज या जो गेंदबाज इस टीम में खेले, क्या वे बेहतर नहीं खेल सकते थे। क्या केएल राहुल की बल्लेबाजी का यही स्तर है, क्या विराट कोहली अपने स्वर्णिम समय को पीछे छोड़ चुके हैं। क्या मिस्टर 360 सूर्यकुमार यादव केवल कमजोर गेंदबाजी के खिलाफ ही उछलकूद करते है, या फिर दीपक हूडा के पास गिनती के दो चार शॉट ही हैं। अब गेंदबाजी की बात करें तो बताईये टीम के सबसे सीनियर गेंदबाज भुवनेश्वर कुमार और युजवेंद्र चहल सबसे ज्यादा कुटाई कराते हैं तो टीम तो बेसहारा होगी ही। सबसे बड़ा सवाल यह नहीं कि कमजोर श्रीलंका ने 174 का स्कोर कैसे चेज कर लिया, सबसे बड़ा सवाल यह है कि गुमनाम हांगकांग ने 150 से ज्यादा स्कोर भारत के खिलाफ कैसे बना लिया।
इससे साबित होता है कि खराब टीम कंबिनेशन के अलावा खिलाड़ी भी बेहतर भी नहीं खेल सके।
लेकिन सिर्फ खिलाड़ियों के सिर पर एशिया कप के खराब प्रदर्शन का ठीकरा फोड़ना भी सही नहीं। भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड भी इसके लिए कम दोषी नहीं। बीसीसीआई को इंटरनेशनल क्रिकेट के बजाय आईपीएल की चिंता है। बीसीसीआई के लिए क्रिकेट से जुड़ी देश की प्रतिष्ठा के बजाय आईपीएल से होने वाली कमाई की चिंता है। रणजी ट्रॉफी, दिलीप ट्रॉफी या देवधर ट्रॉफी जैसे टूर्नामेंटों को आकर्षक बनाने की कभी कोशिश नहीं की, जबकि देश का क्रिकेट सिस्टम इन्हीं प्रतियोगिताओं पर निर्भर है। बीसीसीआई केवल फ्रेंचाईजी क्रिकेट के लिए देश की प्रतिभा को झोंक रहा है, ताकि स्पांसरशिप से उसे मोटा मुनाफा हो। अब जब बीसीसीआई का ही ध्यान केवल माल पीटने पर है तो फिर क्रिकेटर भी आईपीएल पर ही ध्यान देते हैं, बजाय इंटरनेशनल टूर्नामेंटों के। यही कारण है कि पिछले वर्ल्डकप टी-20 में भारतीय टीम सेमीफाइनल में भी नहीं पहुंच पायी, जबकि इस एशिया कप में भी अपनी बेइज्जती करा ली।
ऐसे में बीसीसीआई को यह सोचना होगा कि देश की जनता अपनी गाढ़ी कमाई केवल इंटरनेशनल क्रिकेट में जौहर दिखाने वालों के लिए बहाती है, न कि क्रिकेट के नाम पर सर्कस के लिए। लोग भी उन्हें ही क्रिकेट हीरो के तौर पर मानते हैं, जो देश का नाम ऊंचा करते हैं। जनता की इन भावनाओं का बीसीसीआई को लिहाज करना चाहिए, वरना वो दिन दूर नहीं, जब आईपीएल को लेकर भारतीय क्रिकेट हंसी का पात्र बन जाएगा।
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