सर्व प्रथम माँ पार्वती ने रखा था भगवान शिव के लिए करवाचौथ का व्रत
हाथरस। चौथ का व्रत …सत्य सनातन हिंदू धर्म में महिलाओं द्वारा बहुत ही व्यापक रूप से मनाए जाने वाला पर्व है। इस दिन महिलाएं अपनी पति की दीर्घायु के लिए निर्जला व्रत रखती हैं और चंद्र दर्शन के उपरांत ही व्रत को पूर्ण करती हैं। श्री कार्त्तवीर्य नक्षत्र ज्योतिष संस्थान के संस्थापक आचार्य विनोद शास्त्री के अनुसार इस बार कार्तिक महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी यानी कि करवा चौथ की तिथि 12 अक्टूबर की रात्रि 01 बजकर 59 मिनट से प्रारंभ होगी और 13 अक्तूबर दिन बृहस्पतिवार की मध्य रात्रि 03:08 बजे तक रहेगी। करवाचौथ का व्रत उदयातिथि के अनुसार 13 अक्तूबर दिन बृहस्पतिवार को रखा जाएगा। इस दिन शाम को 06:40 मिनट तक कृतिका नक्षत्र रहेगा, उसके उपरांत चंद्रमा रोहिणी नक्षत्र में प्रवेश करेंगे। करवा चौथ के दिन चंद्र देव की पूजा की जाती है और अर्ध्य दिया जाता है। करवा चौथ के दिन चंद्रमा रोहिणी नक्षत्र में सर्वोच्च होकर वृषभ राशि में रहेंगे। चंद्रमा का उच्च राशि वृषभ में होना और रोहिनी नक्षत्र का होना बहुत ही शुभ तथा योग कारक होता है। इस समय में की गई पूजा बहुत शुभ फल देती है और व्रत के परिणाम भी बहुत शुभ फलदायी होते है। इस दिन भगवान शिव पार्वती गणेश एवं कार्तिकेय जी की पूजा की जाती है। सर्वप्रथम माता पार्वती ने भगवान शिव की दीर्घायु के लिए इस व्रत को किया था।
व्रत में काम में आने वाली सामग्री:-
चंदन, सिंदूर, मेहंदी, महावर, कंघा, बिंदी, चुनरी, चूड़ी, बिछुआ, मिट्टी का टोंटीदार करवा व ढक्कन, शहद, अगरबत्ती, पुष्प, कच्चा दूध, शक्कर, शुद्ध देशी घी, दही, मिठाई, गंगाजल, अक्षत (चावल), दीपक, रुई, कपूर, गेहूं, शक्कर का बूरा, हल्दी, जल का लोटा, गौरी बनाने के लिए पीली मिट्टी, लकड़ी का आसन, चलनी, आठ पूरियों की अठावरी, हलुआ और दक्षिणा के लिए पैसे आदि। इन सामग्रियों में से कुछ चीजें व्रत के लिए कुछ चीजें पूजन के लिए होती हैं।
व्रत की विधि:-
सुबह जल्दी उठकर स्नान कर लें
स्नान करने के बाद मंदिर की साफ सफाई करके दीपक जलाएं।
देवी-देवताओं की पूजा अर्चना करें निर्जला व्रत का संकल्प लें
इस पावन दिन शिव-परिवार की पूजा अर्चना की जाती है।
सबसे पहले भगवान गणेश की पूजा करें. किसी भी शुभ कार्य से पहले भगवान गणेश की पूजा की जाती है।
माता पार्वती,भगवान शिव और भगवान कार्तिकेय की पूजा करें.
करवा चौथ के व्रत में चंद्रमा की पूजा की जाती है। रात्रि 08:32 मिनट के उपरांत चंद्र दर्शन करके
चंद्र दर्शन के बाद पति को छलनी से देखें इसके बाद पति द्वारा पत्नी को पानी पिलाकर व्रत पूर्ण किया जाता है।