मथुरा। भगवान भाव के भूखे होते हैं अभिमान भगवान का भोजन होता है अधर्म और अभिमान को मिटाने भगवान स्वयं जन्म लेते हैं । श्रीकृष्ण की भक्ति ब्रज के कण कण में व्याप्त है।भागवाद श्रवण से पापो का अंत होता है।
श्रीमदभागवत कथा प्रसंग के दौरान गोवर्धन रोड स्थित स्टैंडर्ड रिसोर्ट में उक्त उदगार स्वामी सुमेधानंद महाराज के द्वारा गुरुवार को प्रकट किए गए । उन्होंने बताया भगवान भाव के भूखे होते हैं इसी कारण भगवान ने दुर्योधन के मेवा एवं अनेक व्यंजनों के भोजन को ठुकरा कर अपने परम सेवाभावी भक्त विदुर के घर सब्जी एवं दाल भात का प्रसाद ग्रहण किया था उन्होंने बताया जहां अधर्म और अभिमान जब हद से ज्यादा भड जाता है तो भगवान श्री विष्णु प्रथ्वी लोक में जन्म लेते हैं। अहंकार और अभिमान भगवान श्री कृष्ण का भोजन होता है। हमारे पास कितनी भी संपत्ति ऑर वेभव क्यों न हो जाए हम कितने भी शक्ति शाली कयो न हो पर हमे अभिमानी नहीं होना चाहिए।हमे उन फलदार वृक्षों से सीख लेनी चाहिए जिन पर अपार फल लटके होते हैं और वह फल के वजन के कारण नीचे झुक जाते हैं वैसे ही जो व्यक्ति शक्तिशाली होने के बाद झुक कर चला है वह संसार में अमरत्व को प्राप्त करता है। उसका हजारों वर्ष तक नाम चलता है। श्रीमद् भागवत श्रवण मात्र से ही मानव दानव एवं हर प्राणी यहां तक कि जीव जंतु का भी कल्याण होता है और उनके जाने अनजाने के अनेक पाप नष्ट हो जाते हैं श्रीमद्भागवत में भगवान की भक्ति है जो व्यक्ति जीवन के अंतिम समय में सांस लेते समय भी भगवद श्रवण कर लेता है तो उसकी भी सद गति हो जाती है। कथा के दौरान रुक्मणी विवाह के अनेक प्रसंगों का भी वर्णन किया गया उन्होंने कहा कि जब रुक्मणी ने अपने बुद्धि रूपी मणि को भगवान श्री कृष्ण के चरणों में लगा दिया था तो भगवान ने उन्हें अपने श्री चरणों की सेवा का अवसर दिया था।