पार्टियों विचारधाराओं की दीवारों से ऊपर थे नेताजी मुलायम सिंह यादव

देश

प्रदीप चौधरी

मथुरा। चौधरी चरणसिंह की राजनीतिक नर्सरी में पैदा हुए मुलायम सिंह यादव आज हमारे बीच नहीं रहे।

मुलायम सिंह यादव ने 55 साल के लंबे राजनीतिक करियर में विधायक से शुरुआत की और 3 बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। 7 बार सांसद व 8 बार विधायक बने।1967 में चौधरी चरणसिंह की पार्टी भारतीय क्रांति दल से विधायक बनने वाले नेताजी उत्तरोत्तर राजनीति के शिखर पर पहुंचते गए।

मुलायम सिंह यादव पांच भाई बहनों में दूसरे नंबर पर पैदा हुए थे। किसान परिवार में पैदा हुए मुलायम राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर थे व इंटर कॉलेज में शिक्षक सह प्रवक्ता बने।मुलायम को पहलवानी का शौक था और अपने गुरु चौधरी नत्थूसिंह से पहलवानी के गुर सीखते-सीखते राजनीति के गुर भी सीखने लगे।चौधरी नत्थूसिंह की परंपरागत जसवंतनगर सीट से पहली बार विधायक बने।

एक सफल राजनेता के साथ-साथ एक सफल भाई,एक सफल पत्ति व एक सफल पिता रहे है। परिवारवाद का राजनीति में आरोप भले ही झेलते रहे हो लेकिन उन्होंने अपने भाइयों का हमेशा साथ दिया और राजनीति में स्थापित किया।मुलायम जी दो शादियां की और एक सफल पत्ति के रूप में दोनों रिश्तों को निभाया। मुलायम सिंह के नाम पर विधानसभा चुनाव लड़ा गया व जीत दर्ज की लेकिन एक पिता के रूप में उन्होंने कुर्सी बेटे को सौंप दी।

मुलायम सिंह अखाड़े की पहलवानी के साथ-साथ राजनीति में भी पहलवानी किया करते थे। बीहड़ों में बैठी बागी फूलनदेवी को मुख्यधारा में लाकर संसद में भेजने का फैसला कोई मंजा हुआ राजनीतिक पहलवान ही ले सकते था।

कमंडल के खिलाफ मंडल की फाइल्स से धूल झाड़कर वीपी सिंह जी से लागू करवाने में नेताजी की बड़ी भूमिका रही।सामाजिक न्याय की लड़ाई के इस अहम पड़ाव को पार कराने के तारणहार बने नेताजी को हमेशा याद किया जाएगा।

अपने 55 साल के लंबे राजनीतिक जीवन मे जो असल कमाई की वो थी रिश्ते।हर पार्टी व हर नेता के साथ बेहतर संबंध बनाये।विरोधी भी नेताजी की राजनीतिक पहलवानी के आगे नतमस्तक हो जाते थे।

आज श्रद्धांजलि देने वाले नेताओं की भीड़ बता रही है कि भले ही वो प्रधानमंत्री न बन पाए हो लेकिन किसी भी प्रधानमंत्री से कम नहीं थे।पार्टियों/विचारधाराओं की दीवार जब अंतिम समय ढहने लगे तो समझिए कोई महामानव ही रहा होगा। अंतिम जोहार नेता जी।

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