किसानों के हर दर्द को समझते थे मसीहा चौधरी चरण सिंह

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पूर्व प्रधानमंत्री स्व चरण सिंह की 119 वीं जयंती पर भावपूर्ण स्मरण

डा अनीता चौधरी एमए (हिंदी, संस्कृत) पीएचडी

मथुरा। देश के प्रधानमंत्री रहे किसानों के मसीहा चौधरी चरण सिंह को उनके 119 वीं जयंती पर 23 दिसंबर को हम उन्हें याद कर रहे हैं। हम देश की प्रगति के लिए उनके द्वारा दिए गए ‘मूल मंत्र’ को भी एक बार याद कर रहे हैं।
स्व. चरण सिंह कहा करते थे कि भले ही हम कितना भी औद्योगिक विकास कर लें, लेकिन देशवासियों की “तरक्की का रास्ता खेत व खलिहान से होकर ही जाता” है। यही उनका ध्येय वाक्य यानि मूल मंत्र था।
चौधरी साहब किसानों का दर्द और उनकी जरूरत अच्छी तरह से समझते थे। वे स्वयं एक किसान परिवार से थे। अपने आस पास के वातावरण में उन्होंने अभावों को बड़े ही नजदीक से देखा था। 23 दिसम्बर 1902 को मेरठ जिले के नूरपुर में एक जाट परिवार में उनका जन्म हुआ था। इनके पिताजी चौधरी मीर सिंह और माता जी श्रीमती नैतर कौर थीं। इन्होंने प्राथमिक शिक्षा नूरपुर गांव में ही पूर्ण की। विज्ञान वर्ग से स्नातक किया। इसके बाद पुनः कला वर्ग से स्नातक किया। इसके बाद आपने आगरा विश्वविद्यालय से वकालत की परीक्षा पास की और एक अच्छे ईमानदार वकील बने।
वर्ष 1925 ई. में हरियाणा के एक प्रतिष्ठित जाट परिवार में श्री गंगाराम चौधरी की पुत्री श्रीमती गायत्री देवी से इनका विवाह हुआ। इनके पाँच पुत्री एवं एक पुत्र थे। चौधरी अजित सिंह थे।
राजनीति पर हम नजर डालते हैं तो दो नाम ही ऐसे नजर आते हैं जो बेदाग चरित्र के राजनेता थे उनमें एक तो थे लाल बहादुर शास्त्री जी और दूसरे चौधरी चरणसिंह जी।
सादगी की मिसाल, ईमानदारी और मेहनत रूपी रत्नों से विभूषित चौधरी साहब के विषय में कुछ कहना, उनके महान व्यक्तित्व को जैसे-सूरज को दीपक दिखाने के समान होगा।
वर्ष 1929 में उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लिया।1930 में महात्मा गांधी जी की “दांडी यात्रा” के चलते चौधरी साहब ने गाजियाबाद की सीमा पर बहने वाली हिंडन नदी पर नमक बनाया और उसके परिणाम स्वरूप 6 महीने जेल गए थे। 1940 ई. में गांधी जी द्वारा किए गए “व्यक्तिगत सत्याग्रह” में भी बढ़ चढ़कर भाग लिया था। 1942 में गांधी जी ने भारत छोड़ो आंदोलन के माध्यम से”करो या मरो”का नारा दिया था। उस आंदोलन में भी इन्होंने सक्रिय भूमिका निभाई थी।
चौधरी साहब ने एक पुस्तक “शिष्टाचार” नाम से लिखी थी,जो शिष्टाचार के नियमों का बहुमूल्य दस्तावेज थी। इसके अलावा देश की अर्थव्यवस्था और कृषि व्यवस्था पर दर्जनों पुस्तकें लिखीं, जो आज भी हमें मार्गदर्शन करती हैं।
चौधरी साहब के तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू जी से नीतिगत मतभेद रहता था। इसी वजह से सन् 1967 में उन्होंने कांग्रेस पार्टी छोड़ दी। राज नारायण और राम मनोहर लोहिया के साथ मिलकर नयी पार्टी का गठन किया, जिसका चिन्ह” हलधर” था।
चौधरी साहब मोरारजी देसाई जी के कार्यकाल में उप प्रधानमंत्री और गृहमंत्री भी रहे थे। उस सरकार में भी चौधरी साहब कहा करते थे कि—
“भारत कृषि प्रधान देश है। अतः जो भी नीतियां बने वह किसानों के पक्ष को ध्यान में रखते हुए बनाई जाएं। किसानों का सम्मान वे दिल करते थे। वे कहते थे कि “देश की समृद्धि का रास्ता गांवों के खेत खलिहानों से होकर गुजरता है”। किसान इस देश का मालिक है, किसानों की दशा सुधरेगी तो देश भी सुधरेगा।

चौधरी साहब के विषय में रोचक वृतांत है- एक बार उनकी शेरवानी थोड़ी सी फट गई। वह पुरानी भी बहुत हो गई थी। उसे चौधरी साहब ने”रफू”करने के लिए भेज दिया। वह शेरवानी उस बूढ़े दर्जी से न जाने कहां गुम हो गई? जब चौधरी साहब किसी आदमी को लेने भेजा तो दर्जी घबराया और बोला कि साहब में नई शेरवानी बना दूंगा। यह सब किस्सा चौधरी साहब को सुनाया तो,वे हंसने लगे और कहा-वह गरीब कहां से लायेगा, मैं ही खरीद लाऊंगा।

वे सादगी की मिसाल थे
प्रधानमंत्री, उप प्रधानमंत्री, गृहमंत्री और मुख्यमंत्री रहने के बाद भी उनका भोजन क्या था? , रोटियों के साथ एक सब्जी या फिर दाल और गुड़ खाना उन्हें अच्छा लगता था। आज के नेताओं का हाल किसी से छिपा नहीं है। चौधरी साहब बहुत ही दयालु थे। ऐसे बहुत उदाहरण हैं, उनके जीवन के जो हमें सुनने को मिलते हैं। जीवन भर किसानों मजदूरों के हित में कार्य किए। एक किसान नेता के रूप में विख्यात हुए। वह जातिवाद के बहुत खिलाफ थे। उत्तर प्रदेश में जमींदारी उन्मूलन एक्ट लाकर उन्होंने भूमिहीनों को खेती करने लायक बनाया। आज भी देश का हर किसान उन्हें अपना नेता मानता है।

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