मथुरा। श्रीमदभागवत कथा आयोजन समिति के तत्वावधान में शुद्वाद्वैत पुष्टिमार्ग प्रवर्तक महाप्रभु वल्लभाचार्य का वरुथनी एकादशी पर प्राकट्योत्सव लालागंज भरतपुर गेट स्थित जागेंद्रनाथ बालाजी मंदिर पर विगत वर्षों की भाँति परंपरागत रूप से मनाया गया. प्रात: बेला में सर्वप्रथम महाप्रभु की चित्राम छवि का वेदोक्त रीति से मंत्रोच्चारण के मध्य पूजन अर्चन वैष्णव व विद्वानों द्वारा किया गया. तदुपरांत मंगल दीप प्रज्ज्वलित कर उनके जीवन दर्शन पर संगोष्ठी हुयी. संगोष्ठी को संबोधित करते हुए समिति संस्थापक पंडित अमित भारद्वाज ने कहा कि महाप्रभु अग्नि का अवतार थे. अग्निदेव द्वारा उनके पूर्वजों को दिये वरदान के अनुरूप उनकी पीढी में 100 सोम यज्ञ पूर्ण होने पर अग्निवर्तुल में इनका प्रकट होना इस बात का प्रमाण है. भागवत वक्ता आचार्य रामकांत गोस्वामी व महंत दीपक शास्त्री ने कहा कि वह बाल्यकाल से ही कुशाग्र बुद्धि थे, 10 वर्ष की अवस्था में राजा कृष्णदेवराय की सभा में शास्त्रार्थ में विजयश्री प्राप्त कर उनका कनकाभिषेक होना इस बात का प्रमाण है. उन्होंने अल्प आयु में 84 ग्रंथों की रचना की व पैदल तीन पदयात्रा करके 84 स्थानों पर जनकल्याण हेतु श्रीमदभागवत का परायण किया वह स्थान उनकी 84 बैठकों के नाम से जाने जाते है . ब्रज 84 कोस यात्रा का श्रेय भी उन्हीं को है. यज्ञदत्त शास्त्री व गिरीश शास्त्री। ने कहा कि उनके द्वारा प्रदत्त पुष्टिमार्ग में अपने अराध्य के प्रति समर्पण का भाव होता है. वह मूलत: दक्षिण भारत के निवासी, चंपारण्य में जन्मे एवं उनकी कर्मस्थली ब्रज रहा. युवा संचालन करते हुए भागवत वक्ता आलोक बेंकर ने कहा कि महाप्रभु भगवत भक्ति में लीन रहकर स्वयं भगवत स्वरूप हो गए. उनके अराध्य श्रीनाथजी से उनका साक्षात्कार उनकी निष्काम भक्ति को प्रदर्शित करता है. समारोह की अध्यक्षता समिति संस्थापक पंडित अमित भारद्वाज ने व आभार व्यक्त विजयकृष्ण ने व्यक्त किया. इस अवसर पर हर्षवर्धन शास्त्री, गगन शर्मा, नीरज शर्मा, कमलेश शास्त्री आदि ने भी विचार प्रकट किये.