आइए.. ब्राह्मणत्व को समझें

बृज दर्शन

जन्मना ब्राह्मणोज्ञेयः संस्कारैेर्द्विज उच्यते।विद्वत्त्वाच्चापि विप्रत्वंत्रिभिःर्श्रोत्रिय उच्यते।।
जन्म से ब्राह्मण, संस्कार करवाये जाने पर द्विज ,विद्वत्ता प्राप्त अर्थात वेदोपनिषदादि शास्त्रों का ठज्ञान होने पर विप्र तथा तीनों होने पर (जन्म से ब्राह्मण, संस्कार से द्विज तथा विप्र) श्रोत्रिय कहलाता है। ये प्रायः चार प्रकार की ब्राह्मणों की अवस्था होती है।
“जीवन-मरण के चक्र से छुड़ाने वाला गुरु ब्राह्मण ही हो” इस शास्त्रोक्त वचन पर कई तथाकथित विद्वान “बकवास” कहने लगे।कुछ भाग गये। कुछ मौन हो गये। पर इससे शास्त्र को कोई फर्क नहीं पड़ता। शास्त्र वही कहता है जिससे जीव का कल्याण हो।🤔
जो जिस काम में योग्य है उसी का अधिकार है। जब साधारण यज्ञ भी वेदविद् ब्राह्मण से करवाने का विधान है, और हम करवाते भी हैं तो जीवन मरण से मुक्त करने वाली विद्या की दीक्षा में संशय क्यों? और जो संशय करते हैं वे परमात्मा में भी संशय ही करते हैं। क्योंकि जो शास्त्र परमात्मा का संकेत देते हैं वहीं ब्राह्मण को आध्यात्मिक विद्या का रहस्यविद् कहते हैं।और सुनें- निर्लोभ,निर्वैर,शान्त, निष्काम और वेदविद्या में निष्ठ ब्राह्मण को शास्त्र ने “भूसुर” अर्थात् पृथ्वी का देवता कहा है और बाकि जीवों को निर्देश दिया है कि जल्दी करो “इस ब्राह्मण से अपना हित साध लो।” जानकार तो जानते ही हैं कि विद्वान ब्राह्मण साक्षात् देवता ही है। मनुष्यों कि बात ही क्या ? देवता बृहस्पति जी को और राक्षस शुक्राचार्य जी को अपना गुरु बनाए हुए हैं। दोनों ही ब्राह्मण हैं। राक्षसों में भी बुद्धि है। और एक बार इन्द्र गुरु जी को देखकर खड़े नहीं हुए तो गुरु की नाराज़गी से सिंहासन चला गया और दर दर भटके। वैसे व्यक्ति तभी तक नास्तिक और मनमानी करता है जब तक वह स्वस्थ है। समस्या आने पर तो सब ऐंठ निकल जाती है और दर दर भटकता है। मेरे पास ऐसे अनेकों आते हैं जो कहते हैं कि हम परम नास्तिक और ब्राह्मण निंदक थे। पर समय का ऐसा रगड़ा लगा कि जिसने जहां कहा वहीं माथा रगड़ा, और सारी ऐंठ निकल गयी। ध्यान दें- ब्रह्मनिष्ठ ब्राह्मण गत जन्मों की आध्यात्मिक सम्पत्ति का आश्रय है। वही जीवित और मृत दोनों की गति करने का सामर्थ्य रखता है।
ये तो शुक्र है कि ब्राह्मण आज दान दक्षिणा से दूसरों की समस्याओं का हल निकाल देता है। वरना एक समय ऐसा दुर्भाग्यशाली समय भी आएगा कि पैसे हाथ में लिए फिरेंगे और कोई सुपात्र दान लेने वाला नहीं मिलेगा। ब्राह्मण कि प्रशंसा में भगवानभी कहते हैं कि- विद्यावान् हो या अविद्यावान् पर सदाचारी हो वह ब्राह्मण मेरा ही शरीर है-
प्रतिमा ते अधिकं पुण्यं ब्राह्मणो नित्य पूजने।अविद्यो सविद्यो वा ब्राह्मणो मामकी तनु:।।
ब्राह्मणो का सबसे बडा धन संध्या गायत्री,सदाचार से अर्जित तेज होता है। याद करे वो दिन जब ब्राह्मण के एक अंजली जल और मंत्र से दुनिया डरती थी। उसे विमुख होने के कारण ही आज ब्राह्मणो की दुर्दशा है। अत: आइये अपने पुर्वजो को याद करे और अपने मुल कर्तव्य को समझे।
श्री गणेशाय नमः महन्तआचार्य पं राम कृष्ण शास्त्री प्राचीन सिद्ध श्री दुर्गा देवी मंदिर गीता एनक्लेव बैंक कॉलोनी कृष्णा नगर मथुरा फोन नंबर 9411257286,7417935054

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