सुनीत श्रीवास्तव
लखनऊ। …बस करो सरकारों को गालियां देना। जब कांग्रेस की सरकार थी तो उसे गालियां मिल रहीं थीं। आज भाजपा की है तो उसे गालियां दी जा रही हैं। मंत्रियों को कोसा जा रहा है…कभी आपने अपने गिरेबां में झांक कर देखा है? थोड़ी सी भी नैतिकता बची है हम में। लूट-खसोट का तांडव चल रहा है। जो जहां है सिर्फ लूट रहा है। यहां सरकारें नहीं, खोट तो हम में भी है। कोविड महामारी में मरीज को हास्पिटल पहुंचाने के नाम पर एम्बुलेंस संचालक लूट रहा है। ऑक्सीजन सिलेंडर ब्लैक में बिक रहे हैं। गिड़गिड़ाते लोग दस गुना दाम में भी सिलेंडर पाने की कवायद करते दिखते हैं। दवाओं में जो जैसे लूट पा रहा है लूट रहा है। निजी अस्पतालों में तमाम दूसरे खर्चे जोडक़र मरीज का बिल बढ़ाया जा रहा है। आरटीपीसीआर की जो जांच 700 में होनी चाहिये, उसके 1600 तक वसूले जा रहे हैं। ये लूट खुलेआम है। ये कौन कर रहा है? सरकार तो नहीं और न ही मंत्री। फिर ये कौन लोग हैं जो इस महामारी में लूटपाट कर रहे हैं? ये हमारे और आपके ही बीच के हीवो लोग हैं जिनकी संवेदनायें मर चुकी हैं और मानवता इनमें बची नहीं। बचा है तो सिर्फ धन का लोभ।
हां, सरकार इस पर अंकुश लगा सकती है। दसगुना दामों में रेमिडिसिविर के इंजेक्शन बेचने वाले दबोचे भी गये। औचक निरीक्षण भी हो रहे हैं लेकिन इन सबके बीच हमारी अपनी नैतिकता कहां गयी? इस महामारी में हम इतना कैसे गिर गये? सरकारें जो कर पा रही हैं वो कर रही हैं। हम क्या कर रहे हैं? कभी इस पर भी सोचा है। हम सिर्फअपनी जेबें भर रहे हैं। ऑक्सीजनयुक्त जिस एम्बुलेंस का दस किलोमीटर तक का किराया मात्र 1500 रुपये होना चाहिये, उसके 16 हजार रुपये वसूले जा रहे हैं। बीकेटी में एक किलोमीटर तक चली एम्बुलेंस ने 16 हजार रुपये वसूल लिये। एम्बुलेंस वसूली की तमाम खबरें सोशल मीडिया पर भी वायरल हुईं हैं। वास्तव में दस किलोमीटर तक ऑक्सीजनयुक्त एम्बुलेंस का किराया 1500 रुपये निर्धारित है। फिर ये वसूली क्यों? किसी की बेबसी पर अपनी जेबें भरने वाले ये लोग मनुष्य नहीं है बल्कि ये वो राक्षस हैं जो अपनी भूख मिटाने के लिए किसी को भी निवाला बना सकते हैं। इस महामारी में सांसों के भी सौदागार हैं। जिनकी जिंदगी की सांसें ऑक्सीजन पर टिकी हैं, उन्हें भी उन सांसों को खरीदने के लिए मुंहमांगी रकम देनी पड़ रही है। जिस ऑक्सीजन सिलेंडर के रिफलिंग का 500 रुपये तय है वो सिलेंडर भी 20-20 हजार तक बिक गया। अपनों को बचाने के लिए लोग लुट रहे हैं।
एक वाक्या ये भी…एक ऑक्सीजन कन्सनट्रेटर जिसकी एक ही दिन में 42 हजार से बढक़र कीमत एक लाख से ऊपर तक पहुंच गयी। 42 हजार में खरीदा गया ऑक्सीजन कन्सनट्रेटर को जब दूसरा जरूरतमंद खरीदने पहुंचा तो उसी दुकानदार ने उसे 48 हजार में बेचा। तीसरा जरूरतमंद पहुंचा तो उसको एक लाख बताये। दुकानदार की फितरत देखिये, उसने सामने वाले की बेबसी को कैश कराकर अपनी जेबें भर लीं। शमशान में लकड़ी महंगे दामों में बिकने लगी। रेमिडिसिविर इंजेक्शन की कालाबाजारी की खबरें भी सुर्खियों में आयीं। कई डॉक्टर और पैरामेडिकल स्टाफ तक इंजेक्शन बेचकर उगाही में जुट गये। धन कमाने की लालच में कर्ई तो इतने अंधे हो गये कि रेमिडिसिवर के नाम पर दूसरे इंजेक्शन पर लेवल चिपका कर धड़ल्ले से बेच रहे थे। उन्हें इससे कोई लेना देना नहीं था कि ये मरीज को कितना नुकसान पहुंचा सकते हैं। निजी हास्पिटलों में मरीजों से उगाही हो रही है। लखनऊ प्रभारी डॉ. रोशन जैकब ने खुद सहारा और मेयो हास्पिटल में निरीक्षण के दौरान गड़बडिय़ां पकड़ी। इन हास्पिटलों में मरीजों के बिल में अतिरिक्त चार्ज जोड़े गये थे।
ये कुछ उदाहरण मात्र हैं। उन लोगों के लिए जिन्हें अपनी नैतिकता का आभास नहीं रहा। मानवता का अंश मात्र भी जिनमें नहीं बचा। सिर्फ सरकार और प्रशासन को गालियां देने से हालात नहीं सुधरते। इन हालातों को सुधारने के लिए हमें भी आगे आना होगा। लूट-खसोट छोडक़र समाज हित में एक साथ आइये। लूट मत मचाइये, सहयोग किजिये। खुद से मदद को आगे आइये। यकीन मानिये कोविड जैसी महामारी पर तब हमारी जीत आसान होगी। शायद तब हम सरकार को गालियां नहीं, कोविड से जंग जीतने में उसकी मदद कर पायेंगे।