चंद्र प्रताप सिंह सिकरवार
मथुरा। दो साल पहले पुष्कर (राजस्थान) में पूजा-अर्चना के दौरान नेहरू खानदान के पुरोहित द्वारा राहुल गांधी को उनके खानदान की वंशावली पढ़ कर सुनायी गयी। इस पर चर्चा, तर्क और कुर्तकों का दौर चला।
उस पोथी में लिखी वंशावली से इस खानदान के बारे में बहुत कुछ पता चला। वंशावली रखना सनातन परपंररा का एक हिस्सा है।
नेहरू परिवार प्रारंभ से ही धार्मिक रहा है। तीर्थ स्थल मथुरा में इस परिवार की मारू गली (गली भीकचंद्र ) में ‘कश्मीरी पंडितान की धर्मशाला’ है। ये धर्मशाला आज जर्जर हो चुकी है। बीएसए कालेज में प्रवक्ता रहे प्रो. अशोक अग्रवाल ने नेहरू परिवार की इस धर्मशाला का पता लगाया।
बहुत कम लोगों को इस बात का इल्म है कि इस धर्मशाला का निर्माण प. मोतीलाल नेहरू ने पुत्ररत्न (जवाहर लाल नेहरू ) के जन्म की ख़ुशी में करवाया था। बाद में मोतीलाल नेहरू अपनी पत्नी स्वरूप रानी, पुत्र जवाहर लाल नेहरू, कमला नेहरू को लेकर आए थे। इंदिरा गांधी के लिए भी ये धर्मशाला ‘ शुभ’ साबित हुई।
दरअसल वर्ष 1888 में मोतीलाल नेहरू अपनी पत्नी स्वरूप रानी के साथ मथुरा तीर्थ यात्रा पर आये थे। उनके पुरोहित बनकली चतुर्वेदी ने कश्मीर के ब्राह्मणों की सुविधा के लिए मथुरा में एक धर्मशाला बनबाने का प्रस्ताव रखा। मोतीलाल बोले —‘ यदि मेरे पुत्र हुआ तो इस कार्य को अवश्य करेंगे ” । चौबेजी ने यमुना मैया का उल्लेख करते हुए पुत्र रत्न होने का आशीर्वाद दे दिया था।
संयोग से 14 नबम्बर 1889 को जवाहर लाल पैदा हुए। प. मोतीलाल ने अपना वचन निभाया और अपने मुंशी को इलाहाबाद से मथुरा भेजा था। यमुना किनारे मारू गली में एक स्थान का चयन किया गया, जहां दो मंजिला इमारत (धर्मशाला) का निर्माण करवाया था। इसके निर्माण पर उस समय 32 हजार रुपये का खर्च आया था।
बाद में 19 जुलाई 1908 को मोतीलाल नेहरू मथुरा आये। इसके गेट पर लगे पत्थर का अनावरण किया गया। पत्थर पर पर उर्दू में खुदा है —‘ कश्मीरी पण्डितान बहकमाम व् इंतजाम बनकली चौबे ”।
1921 में जवाहर लाल नेहरू कमला नेहरू के साथ फिर यहां आये और तीन घंटे अपनी इस धर्मशाला में बिताये थे।
0 1 अक्टूबर 1927 को स्वरूप रानी नेहरू अपने पुत्र जवाहर और बहुरानी कमला नेहरू (28 फरवरी 1936 को कमला नेहरू का देहांत हुआ ) के साथ इस धर्मशाला में आकर रुके थे। स्वरूप रानी तब यहां 17 नबम्बर तक रुकीं थीं।
बनकली चौबे ने उस समय मोतीलाल और स्वरूप रानी से अपने संबंधों के बारे में एक प्रमाण पत्र हासिल किया।
आज भी वे सभी पत्र बनकली के वंशज राजेंद्र प्रसाद चतुर्वेदी के पास हैं। इसके बाद 25 मार्च 1952 को श्रीमती इंदिरा गांधी ने यहाँ आकर अपने दादा -दादी का स्मरण किया था। उसके बाद नेहरूजी के किसी वंशज ने इधर रुख नहीं किया।
हां, एक बार शीला कौल (इंदिरा गांधी की मामी) जिनका 15 जून 2015 को देहांत हुआ था, को इस धर्मशाला में गली के लोगों ने देखा था।
फिलहाल बनकली के वंशज राजेंद्र चतुर्वेदी को इस इमारत के जर्जर होने और नेहरूजी के वंशजों द्वारा अब कोई आर्थिक मदद न करने का बेहद अफसोस है।
इस धर्मशाला के जिस कमरे में मोतीलाल अपनी पत्नी के संग रुके थे , आज उस कमरे में एक गाय का चारा बिखरा पड़ा रहता है।
जब इलाहाबाद का स्वराज्य भवन और आनंद भवन पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र हो सकता है, तो मथुरा की यह धर्मशाला संरक्षित क्यों नहीं हो सकती ?। इमारत के बाहर उक्त विवरण की पट्टिका लग जाये तो क्या हर्ज है ? इससे जनपद का इतिहास तो समृध्द होगा, साथ ही लोगों को यह जानकारी भी मिल सकेगी कि नेहरू परिवार का धार्मिक रीति-रिवाजों में कितना विश्वास रहा है ?