दो दिन में उपमन्यु ने पलट दिया था पासा, विरोध हुआ डिवाइड
उपमन्यु के दाव से हेमा ने सभी विधानसभाओं में की जीत दर्ज
मथुरा। मथुरा में लोकसभा चुनाव संपन्न हो जाने के बाद अब विभिन्न पार्टी और उम्मीदवार चयन को लेकर के मंथन शुरू हुआ है। लोग अपनी पार्टी के विभिषण जिम्मेदारों को कोस रहे हैं। बहुजन समाज पार्टी द्वारा लोकसभा प्रत्याशी घोषित हुए पं. कमलकान्त उपमन्यु एडवोकेट का यकायक टिकट काट दिए जाने से नाराज ब्राह्मण एवं बसपा के कैडर वोट का गुस्सा वोटिंग मशीन के बटनों पर दिखाई दिया। जितने वोट बसपा प्रत्याशी को मिलने चाहिए थे वह नहीं मिले ओर वोट भाजपा प्रत्याशी हेमामालिनी को ट्रांसफर हुआ।
बसपा से टिकट कटने के बाद श्री उपमन्यु ने मतदान के दो दिन पहले बसपा की सक्रिय राजनीति से यह कहते हुए इस्तीफा दे दिया था, कि उनको अभी तक पार्टी प्रत्याशी न किसी पार्टी पदाधिकारी ने संपर्क किया है। लिहाजा अब उनका इस दल में बने रहने का कोई औचित्य नहीं है। चुनाव मतदान से एक दिन पूर्व श्री उपमन्यु ने अपने साथ बसपा से जुड़े कई वरिष्ठ नेताओं को साथ लेकर के भाजपा ज्वाइन कर ली थी। इस संदेश से जिले में अल्पसंख्यक समाज ने यह कहते हुए कि अब बसपा में बचा क्या है बड़ी संख्या में हाईकास्ट के लोग बसपा को छोड़ उपमन्यु के साथ भाजपा में चले गए तो उन्होंने बसपा प्रत्याशी के जगह अपना मत सपा कांग्रेस गठबंधन प्रत्याशी धनगर को ही देना उचित समझा। हुआ भी यही शहर से लेकर देहात तक मुस्लिम समाज के लोग धनगर को वोट देते नजर आए। बसपा प्रत्याशी से कुछ प्रतिशत दलित वोट भी ट्रांसफर हुआ। श्री उपमन्यु पहले छावनी परिषद के चुनाव में पार्षद का चुनाव जीतन के बाद एवं छावनी के बाईस चेयरमैन और छावनी परिषद की सिविल एरिया एवं फाइनेंस के चेयरमैन निर्विरोध निर्वाचित हुए थे। इसके बाद ही उन्हें सन 1999 में बसपा के संस्थापक राष्ट्रीय अध्यक्ष मा. कांशीराम एवं सुश्री बहन मायावती ने मथुरा संसदीय क्षेत्र से लोकसभा का प्रत्याशी बनाया था। पूरे उ.प्र. में दो सीटों पर ही ब्राह्मण प्रत्याशी उतारे थे, जिनमें मथुरा से श्री उपमन्यु एवं जलेसर से रामवीर उपाध्याय को चुनाव लड़ाया गया था। उस समय उपमन्यु को लगभग साढ़े पांच लाख पड़े वोटों में से एक लाख 19 हजार वोट मिले थे। तथा लगभग 15 हजार वोट कैंसिल हुए थे। उस समय बसपा से विद्रोह कर दो बसपा नेताओं ने भी चुनाव लड़ा था। उन्होंने भी बसपा के कैडर वोट को हांसिल किया था। इतना ही नहीं उस समय कांग्रेस, रालोद, माकपा, भाकपा, भाकियू आदि के गठबंधन से संयुक्त उम्मीदवार रामेश्वर चौधरी मैदान में थे। भाजपा से दो बार के सांसद तेजवीर सिंह तीसरी बार चुनाव लड़ रहे थे। उन दिनों देश का चर्चित पनवारी कांड हुआ था। उसमें रामेश्वर एवं उनके पिता बाबू लाल काफी चर्चित हुए थे। इसलिए बसपा का कैडर वोट रामेश्वर को हराने के लिए भाजपा की ओर ट्रांसफर हुआ था तथा सभी गठबंधनों के प्रत्याशी होने के कारण रामेश्वर चौधरी का हल्ला बहुत ज्यादा था। इसलिए अल्पसंख्यक वर्ग भी बसपा को न मिलकर रामेश्वर चौधरी को वोट कर गया था। श्री उपमन्यु को बसपा का न कैडर वोट मिला था न अल्पसंख्यक वोट। फिर भी करीब साढ़े पांच लाख वोटों में से श्री उपमन्यु ने एक लाख 19 हजार मत हांसिल किए थे। 1999 के इस चुनाव समीकरण के बाद आज 2024 के चुनाव में बसपा प्रत्याशी यह मत उस प्रतिशत के हिसाब से भी बसपा प्रत्याशी हांसिल नहीं कर पाए। इस चुनाव में उनको साढे नौ लाख पड़े वोटों में से मात्र एक लाख अट्ठासी हजार एक सौ बामन वोट ही मिले। इस अनुपात से भी श्री उपमन्यु का वोट प्रतिशत अच्छा रहा। बसपा के कैडर वोट एवं ब्राह्मण एवं सभी समाज के प्रबुद्ध लोगों में उपमन्यु की टिकट कटने पर खासी निराशा और नाराजगी जाहिर हुई थी। इसी कारण बसपा प्रत्याशी को इस चुनाव में जो मत प्रतिशत मिलना चाहिए था वह नहीं मिला तथा तीसरे नंबर पर संतोष करना पड़ा। यही नहीं उपमन्यु के यकायक भाजपा में चले जाने से हेमामालिनी एवं भाजपा से नाराज वोटर एकजुट न रहकर डिवाइड हो गया था। जहां अल्पसंख्यक कांग्रेस प्रत्याशी की ओर मुड़ गया वहीं ब्राह्मण एवं बसपा का कुछ प्रतिशत कैडर वोट भाजपा प्रत्याशी के पक्ष में मतदान कर गया। जिससे हेमामालिनी की जीत बहुत आसान हो गई।