130 हेक्टेयर में भगवान श्रीकृष्ण की प्रिय प्रजातियों के लगेंगे 76,875 पौधे
मथुरा। वृन्दावन के ग्राम सुनरख के पास 130 हेक्टेयर के क्षेत्रफल में सौभरि वन (सिटी फॉरेस्ट) विकसित किया जाएगा। इस वन में भगवान श्रीकृष्ण की प्रिय प्रजातियों के 76,875 पौधे लगाए जाएंगे। जापानी पद्धति मियांबाकी के माध्यम से सितंबर माह से पौधरोपण प्रारंभ किया जाएगा।
गुरुवार को कलेक्ट्रेट सभागार में आयोजित पत्रकार वार्ता में जिलाधिकारी नवनीत सिंह चहल और मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष नागेंद्र प्रताप ने सौभरि वन में किए जाने वाले पौधरोपण के बारे में जानकारी दी। ग्राम सुनरख के पास में 130 हैक्टेयर भूमि पर वन विभाग द्वारा भगवान श्रीकृष्ण की प्रिय प्रजातियों के 76,875 पौधों का रोपण किया जायेगा। चयनित स्थल पर बनाये जा रहे प्रजातिवार ब्लॉकों की कांटेदार तार फेंसिंग वन विभाग द्वारा की जायेगी। चयनित स्थल की परिधि/सीमा पर खम्भों पर कांटेदार तार फेंसिंग एवं 4 वाच टावरों की स्थापना का कार्य मथुरा-वृन्दावन विकास प्राधिकरण के 2 करोड़ रुपये के वित्त पोषण से की जायेगी। परियोजना में प्रस्तावित अवशेष कार्य यथा पौधालय स्थापना, जापानी पद्धति मियांबाकी के माध्यम से पौधरोपण, जल एवं मृदा संरक्षण के लिए जल निकाय एवं जल निकासी वाहिकाओं का निर्माण, लैण्ड स्केपिंग की द्वितीय चरण की परियोजना का निरूपण वन विभाग द्वारा और वित्त पोषण उप्र ब्रज तीर्थ विकास परिषद द्वारा अग्रिम वर्ष में की जायेगी। चयनित स्थल को अतिक्रमण से मुक्त कराकर व परियोजना को पूर्ण कराने में जिला प्रशासन द्वारा नेतृत्व किया जायेगा।
परियोजना का पर्यावरणीय, पौराणिक और धार्मिक महत्व
सौभरि वन (फॉरेस्ट सिटी) वृन्दावन के विकास के लिए निरूपित इस परियोजना का पर्यावरणीय , पौराणिक और धार्मिक महत्व है। परियोजना से ईको रेस्टोरेशन, वन्य जीव प्रातवास और स्थानीय पर्यावरण स्थल का विकास होगा , जो कालान्तर में बन्दर के प्रातवास के लिए उपयोगी सिद्घ होगा। मथुरा – वृन्दावन के निकटस्थ विकसित होने वाला यह सौभरि वन ( नगर वन ) प्रदेश का सबसे बड़ा नगर वन होगा और आसपास के जनजीवन के लिए ऑक्सीजन डक्ट का कार्य करेगा।
चयनित परियोजना स्थल के एक ओर कोसी ड्रेन और दूसरी ओर यमुना नदी है। बीच का यह स्थल भगवान श्रीकृष्ण की कालीयदेह दमन लीला और सौभरि ऋषि की तपोस्थली है। इस कारण चयनित क्षेत्र पौराणिक, धार्मिक और ऐतिहासिक रूप में अत्यन्त महत्वपूर्ण है। इस दिव्य लीलास्थली का पुन: प्राकट्य होने से क्षेत्र में धार्मिक पर्यटन विकसित होगा। ग्राम सुनरख में आज भी सौभरि ऋषि का आश्रम है। विष्णु पुराण, देवी भागवत पुराण एवं श्रीमद्भागवत पुराण के नवें स्कन्द के छठे अध्याय में सौभरि ऋषि के विषय में वर्णन उद्घृत है। सौभरि ऋषि की इस तपोस्थली पर अनुष्ठान करने और भक्ति-भाव से दर्शन करने से समयान्तर्गत वर्षा होना और इच्छा करने पर वंश वृद्घि होने की मनोकामना पूर्ण होती है।