मथुरा। व्यासपीठ से प्रवचन करते हुए पंडित विष्णु विराट आचार्य ने कहा कि भागवत कथा को श्रवण कर मननचिन्तन करने से व्यक्ति जिस दिन भागवतमय हो जायेगा, उस दिन श्रीकृष्ण- बलराम व्यक्ति के हृदय मन्दिर में विराजमान हो जायेंगे। भाव ही प्रभु का भोग है !
पंडित विष्णु विराट आचार्य विश्व लक्ष्मी नगर में चल रही भागवत कथा में पांचवें दिन श्रोताओं को प्रवचन दे रहे थे। इस अवसर पर श्रोताओं को कथा रस से मंत्र मुग्ध करते हुए आचार्य जी ने बताया कि दुखः में यदि सुख से रहना चाहते हो तो प्रभु का चिंतन निरन्तर बना रहना चाहिए। भगवान को भूल जाना ही संसार की सबसे बड़ी विपत्ती है और प्रभु का सर्वदा स्मरण बने रहना ही जीवन का सफल होना है।
व्यासपीठ से श्रोताओं को बताया कि दान करने से धन बढ़ता है और धन पवित्र होता है। राजधर्म-मोक्ष धर्म की व्याख्या वाणों पर पड़े जब पितामह भीष्म ने की तो वहीं खड़ी द्रोपती हंस गयीं। यह देखकर पितामह भीश्म को आश्चर्य और दुखः हुआ। तब द्रोपती ने अपना मौन तोड़ते हुये कहा कि आप जिस राजधर्म की व्याख्या कर रहे हैं। उस समय आपने अपनी आंखों से उस महापाप को क्यों होने दिया।
इस अवसर पर आयोजक विश्वकर्मा पण्डाजी, विवेक शर्मा एवं पण्डा परिवार सहित भक्तगण उपस्थित रहे।