चौधरी अजित सिंह: एक अविस्मरणीय व्यक्तित्व

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डा शिमला
पूर्व निदेशक, लोकसभा

नई दिल्ली। देश ने चौधरी अजित सिंह के रूप में एक बड़े किसान नेता को खो दिया है। उनका जन्म 12 फरवरी 1939 को जिला मेरठ के भडोला गांव में एक स्वतंत्रता सेनानी परिवार में हुआ था। यह वह समय था, जब उनके पिता स्व चरण सिंह जी स्वतंत्रता आंदोलन में अपनी भूमिका निभा रहे थे। लिहाजा, छोटे से अजित के पालन-पोषण का जिम्मा मां गायत्री देवी पर था।
अजित एक नेकदिल और विनोदी थे।
बचपन से ही असाधारण रूप से प्रतिभाशाली थे। लखनऊ शहर से शुरुआती स्कूली शिक्षा के बाद उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री ली। इसके बाद भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, खड़गपुर से इलेक्ट्रॉनिक्स और इलेक्ट्रिकल संचार इंजीनियरिंग में दूसरी स्नातक की डिग्री हासिल की। इसके बाद उन्होंने इलिनुवा इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (IIT) शिकागो से विज्ञान में मास्टर डिग्री प्राप्त की। अजित सिंह एक कुशल कंप्यूटर वैज्ञानिक थे।
उन्होंने लगभग दो दशक तक अमेरिका की एक बड़ी बहुराष्ट्रीय कम्पनी आईबीएम के साथ काम किया।
पारिवारिक परिस्थितियों के कारण उन्हें वापस भारत आने के लिए मजबूर होना पड़ा क्योंकि उनके पिता 1985 में अचानक बीमार हो गए थे, और कोमा में चले गए थे।
राजनीति में आना उनके लिए सुनियोजित नहीं था बल्कि जब उनके पिता कोमा में चले गये तो लोक दल के कार्यकर्ताऔं ने उन्हें पार्टी का अध्यक्ष बनने के लिए राज़ी कर लिया। वह राजनीति में भले ही अनमने मन से आये हों परन्तु उन्होंने जल्द ही अपने आप को एक सफल राजनेता के रूप में स्थापित कर लिया।

47 वर्ष की अवस्था में राजनीति में उतरे
चौधरी चरण सिंह एक ऐसे आदर्श और गुणी नेता थे, जिन्होंने कभी अपने बेटे के लिए नेतृत्व के क्षेत्र में जाने के बारे में नहीं सोचा था। वह अजित सिंह को राजनीति से दूर रखते थे। खुद अजित सिंह भी उत्सुक नहीं थे, लेकिन अपने पिता के अनुयायियों के लगातार आग्रह के चलते उन्हें 47 वर्ष की उम्र में राजनीति में उतरना पड़ा।
किसी ने सोचा नहीं था कि अजित सिंह ऐसा कर सकते हैं, लेकिन सभी बाधाओं के बावजूद, उन्होंने भारतीय राजनीति में अलग पहचान बनाई।

उन्होंने जुलाई 1986 में राज्य सभा के सदस्य के रूप में अपनी पारी शुरू की। 29 मई 1987 को लंबी बीमारी के कारण अपने पिता के निधन के बाद, अजित सिंह लोकदल के अध्यक्ष बने। चंद्रशेखर जी के द्वारा थोड़े अनुनय के बाद उन्होंने जनता दल का विलय जनता पार्टी के साथ कर दिया और 1988 में इसके अध्यक्ष बने। 1989 में जनता दल के गठन के साथ वे इसके महासचिव बने।

पहली बार बागपत से 89 में चुने गए
पहली बार, उन्होंने नवंबर 1989 में बागपत सीट से लोकसभा में प्रवेश किया। उन्होंने लोकसभा में छह बार उसी निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया था।
उनकी राजनैतिक सोच में धर्म, धन ,बल हिंसा,ध्रुवीकरण या तुष्टिकरण का कोई स्थान नहीं था।वे सबको साथ लेकर चलने में विश्वास रखते थे। किसान,मज़दूरों व ग़रीबों का उन पर पूरा विश्वास था।
उनका मानना था कि राजतंत्र का हिस्सा रहते हुए ही लोगों के हित के काम किये जा सकते हैं। इसलिए उन्होंने राजनैतिक समझौतों में जनहित को वरीयता दी।
चार प्रधानमंत्रियों के साथ कार्य किया
अजित सिंह ने चार प्रधानमंत्रियों के साथ कैबिनेट मंत्री के रूप में काम किया ताकि वे लोगों के लिए काम कर सकें। उन्होंने 1989-90 तक वाणिज्य और उद्योग मंत्री के रूप में वीपी सिंह; पीवी नरसिम्हा राव के साथ 1995-96 से खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्री; अटल बिहारी वाजपेयी के साथ 2001-03 से कृषि मंत्री और 2011-14 से डॉ मनमोहन सिंह के साथ नागरिक उड्डयन मंत्री के रूप में काम किया।
उन्होंने अलग-अलग कार्यालयों में रहते हुए और उन सामाजिक सेवाओं के लिए, जो उन्होंने राज्यों में खेती और श्रमिक समुदायों के लिए प्रदान की थीं तथा अनेकानेक स्स्मरणीय कार्यों के लिए कभी कोई प्रचार नहीं किया था। क्योंकि वे ढिंढोरे के बजाय काम करने में विश्वास करते थे।
किसानों की समस्याओं का एहसास होने के बाद, उन्होंने चीनी मिलों, सरकारी नलकूपों, और पशु चिकित्सा विज्ञान केंद्रों, सरकारी पॉलिटेक्निक कॉलेजों, गांवों को जोड़ने वाली सड़कों का निर्माण,गांवों के विद्युतीकरण के बड़े पैमाने पर विस्तार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। नियमों में संशोधन कराके और कुछ प्रतिबंधों को हटवाकर कई गन्ना मिलों की स्थापना करायी।
अजित सिंह कई मायनों में अपने पिता की तरह थे। उनके पास सर्वश्रेष्ठ धर्मनिरपेक्षता थी। अपने पिता की तरह उन्होंने देश में विविध धर्मों और संस्कृतियों से जुड़े लोगों को एकजुट करने के लिए अथक प्रयास किया। उन्होंने विभिन्न विचारधाराओं के नेताओं के साथ काम किया लेकिन उन्होंने कभी भी अपने शिविर में किसी को भी स हिष्णुता और समावेश की अपनी प्रतिबद्धता पर समझौता नहीं करने दिया। उन्होंने हमेशा संस्कृति, धर्म और विविधता के बहुलवाद के लाभों को रेखांकित किया। वे कोमल दुलार और मृदुभाषी शब्दों के महत्व को भली भाँति समझते थे। उनके पास गलत काम करने वालों को कोई संरक्षण नहीं देने का बेहतरीन रिकॉर्ड था। चार दशक से अधिक के अपने राजनीतिक कैरियर में उन्होंने कभी भी किसी भी प्रकार का फायदा नहीं उठाया। वह हमेशा अपने साथियों व विरोधियों दोनों ही के साथ उतना ही सौहार्दपूर्ण व्यवहार करते थे।
उनके पास जो भी जाता था उसकी व्यक्तिगत काम की सहायता करने में भी कोई हिचक नहीं करते थे। इसीलिए चुनावी हार के बावजूद भी लोगों के बीच उनके लिए स्नेह और सम्मान में कभी कमी नहीं आयी।
राजनीति में अपने शुरुआती वर्षों से ही, अजित सिंह ने किसानों के कल्याण और सामान्य रूप से वंचितों और विशेष रूप से पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लोगों के लिए कटिबद्धता दिखाई। सुशासन के उत्कट समर्थक के रूप में, वह छोटे राज्यों के पक्ष में थे। वह चाहते थे कि यूपी राज्य को हरित प्रदेश, पूर्वांचल और बुंदेलखंड में विभाजित किया जाए। इसके अलावा, वह शिक्षा और लघु उद्योगों के विकास और विकास के पक्षधर रहे।
मैंने उन्हें लोक सभा में मंत्री के रूप में कठिन प्रश्नों के उत्तर सक्षमता से देते हुए देखा है। विपक्ष की तीखी टिप्पणियों पर भी खिलखिलाते रहते थे। उनके जाने से भारतीय राजनीति में जो रिक्ति आई है वह अपूर्णीय है। उन्हें उनकी स्वच्छ राजनीति और अपने प्रकार के अलग व्यक्तित्व के रूप में हमेशा याद किया जायेगा।
आज के घन, बल, हिंसा, ध्रुवीकरण और तुष्टिकरण के राजनैतिक वातावरण में चौ० अजीत सिंहं की स्वच्छ पारदर्शी राजनीति और जनहित की कार्यनीति एक प्रकाश स्तम्भ का काम तो कर सकती है पर उनकी विरासत को मज़बूत करना व आगे बढ़ना कठिन अवश्य है।

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