बलभद्र की रसोई पर संकट, पता नहीं कब हो जाये भयंकर हादसा

हाथरस

-मंदिर की प्राचीर गिरने के बाद आ धमका था कोरोना
-अनुष्ठान की कमी से बड़े सहाब के घर में पहुँच गई है बीमारी, लड़का है बीमार
-बलभद्र महायज्ञ में भी नहीं आये थे बड़े सहाब
-सेवायतों को सता रहा है मौत का भय

श्री दाऊजी महाराज

हाथरस। हाथरस की हकीकत का हर्स कुछ ऐसा है कि यहां के महाराजा के लिए अब रोटियों के लाले पड़ने वाले हैं। क्योंकि सूई आकर पुरातत्व पर अटक गई है। अटके भी क्यों नहीं ? क्योंकि पुरातत्व तो नियमानुसार पहल करेगा, लेकिन दाऊजी की रसोई पर गहरा संकट है। कब छत मलवे में बदल जाय कुछ पता नहीं ?
कान्हा और कंस से ताल्लुक रखने वाला हाथरस भले ही अपने आप में वैदिक और पौराणिक इतिहास पर इतराता हो, लेकिन आज ब्रज के राजा और उसकी सेवा पर संकट है। जिस शहर का नामकरण भी स्वयं महादेव ने किया था और उसकी गवाही देता ब्रह्मवैवर्तपुराण हाथरस को द्वापर से जोड़ता है, वह शहर आज पुरातात्विक धरोहर को सजोये पुरातत्व विभाग के सामने घुटने टेक, होने वाले हादसे की घड़िया गिन रहा है। पिछले कोरोना काल के पहले से ही ऐतिहासिक मंदिर श्री दाऊजी महाराज संकटों के दौर से गुजर रहा है। क्योंकि 1817 में लगी मंदिर की प्राची (सुर्री) अचानक गिर गई थी और इसको देविय प्रकोप मानते हुए एक भयंकर संकट अंदेशा ज्योतिषाचार्यों ने बताया था। ठीक एक सप्ताह बाद ही देश कोरोना काल बनके आया और न जाने कितनी जानो को ले गया, लेकिन मुख्य तथ्य यह है कि पुरातत्व की बंदिशों के चलते जो अनुष्ठान होने थे नहीं हो सके। परिणिति यह रही कि पुन: कोरोना ने काल बन पहले से भी ज्यादा तबाही मचाई। साथ ही मंदिर के आगे लगे कई बरामदे भी धरासाई हो गये। ज्योतिषाचार्यों का तो यहां तक कहना है कि काले देव (बलभद्र) की भृकुटि टेड़ी हो रही हैं। अब संकट सेवादारों और इसके लिए जिम्मेदार पुरातत्व व अन्य अधिकारियों पर है। इस बात की तो मथुरा में बैठे एक अधिकारी ने भी यह कहते हुए पुष्ठी की है कि उनके बड़े सहाब के लड़के की तबिया काफी खराब है। इधर सेवायतों की माने तो मंदिर की छत कभी भी धरासाई हो सकती है।

आइये जानते हैं क्या कहते हैं सेवायत

मंदिर सेवायत पवन चतुर्वेदी का कहना है कि मंदिर की सभी छते कमजोर हैं। रसोई के हालात तो यह हैं कि कभी भी कोई गंभीर हादसा हो सकता है। छत के नीचे बल्ली लगा जैसे-तैसे ठाकुर की रसोई बनती है। जगह-जगह से मंदिर क्षतिग्रस्त होता जा रहा है। हर पल मौत का भय है। पिछले कई वर्षों से जीर्ण-शीर्ण मंदिर सुधार की शिकायत पुरातत्व विभाग से कर रहे हैं। हमारे पिछले सेवायतों ने भी इसकी कोई बार शिकायत की है, तब जाकर टेंडर उठने की नौहवत आई है। अब पता नहीं पुरातत्व वाले इसको सुधार ने में कितने महीने और साल लगायेंगे। हम स्वयं सहयोग से ठीक कराने की इजाजत मांगते हैं तो हमारे खिलाफ कार्रवाई की धमकी दी जाती है।

सेवायत पवन चतुर्वेदी

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