आजादी के 175 वां अमृत महोत्सव
मथुरा। महाराणा प्रताप सिंह ने वर्षों तक मुगल सम्राट अकबर के साथ संघर्ष किया था, परन्तु दास्तां स्वीकार नहीं की। उसके बाद छत्रपति शिवाजी महाराज ने भी इन मुगलों की सत्ता को चुनौती दी थी। इसी दौरान वीर गोकुला जाट (गोकुल सिंह) ने औरंगजेब की सत्ता को हिला दिया था। कहा जाता है कि, गोकुल सिंह महाराजा सूरजमल के पूर्वज थे।
“वीर गोकुला जाट”भारतीय इतिहास के प्रसिद्ध वीरों में से एक हैं। यह तिलपत इलाके के सिनसिनी गांव के सरदार थे। इतिहास कारों ने बताया है कि यह तिलपत के प्रभावशाली जमींदार थे।बात उस समय की है,1660-70 के बीच का समय था,वीर गोकुल सिंह में संगठन की बहुत क्षमता थी, वह बहुत ही निडर व साहसी होने के साथ-साथ दृढ़ प्रतिज्ञा वाले थे।वह सिनसिनी के सरदार थे।
औरंगजेब ने यहां के किसानों पर,अनेक प्रकार के कर लगा रखे थे, और हिन्दुओं को जबरन इस्लाम धर्म अपनाने के लिए विवश किया जा रहा था।ऐसे में इस तिलपत इलाके के जमींदार ने अपनी आवाज बुलंद की। इन्होंने मुगल बादशाह को किसी भी प्रकार का कर लेने से मना कर दिया। और मुगल सेना के विरोध में खड़े हो गए। एक छोटे-से जमींदार के विद्रोह को औरंगजेब सहन नहीं कर पाया और उसने रंददाज खां और हसन अली खान को मथुरा का फौजदार नियुक्त करके बड़ी सेना के साथ भेज दिया।
उधर गोकुला जाट ने भी जाट,अहीर,गूजरों के वीर किसानों की सेना एकत्र कर ली। 10 मई सन् 1666 को तिलपत पर मुगल सेना ने हमला बोल दिया। इसमें वीर गोकुला जाट और उसके चाचा उदयवीर सिंह ने बड़ी बहादुरी से युद्ध किया और किसान वीरों ने मुगल सेना को खदेड़ दिया। इसके बाद पाँच माह तक इधर-उधर भंयकर युद्ध होते रहे। मुगलों में वीर गोकुला जाट की वीरता व युद्ध संचालन का भय बैठ गया।अंत में सितंबर माह में निराश होकर,शक शिकन खां ने गोकुल सिंह के पास संधि प्रस्ताव भेजा, और कहा-गोकुला माफी मांगे, और कर की लूट की है उसे लोटा दे। इस पर वीर गोकुला जाट ने माफी मांगने से इंकार कर दिया, और कहा-मैने कोई अपराध नहीं किया,सो माफी मांगू।
इससे तिलमिलाए औरंगजेब ने 28नम्बवर 1669 ई.में दिल्ली से मथुरा आकर युद्ध की तैयारियां शुरू कर दीं।
उधर गोकुला जाट ने भी जाट अहीर गूजरों की 20,000(बीस हजार)की सेना तैयार कर ली थी। औरंगजेब ने हसन अली खान और रजुदीन भागलपुरी के नेतृत्व में बड़ी सेना युद्ध के लिए भेजी।मुगल सेना और गोकुला जाट की सेना में भयंकर युद्ध हुआ। उदयवीर सिंह और गोकुला जाट के सैनिकों ने बड़ी बहादुरी से युद्ध किया, परन्तु मुगलों के तोपों का वह मुकाबला नहीं कर पाये और अंत में गोकुल सिंह की हार हुई,उनको बंदी बना लिया गया,गोकुला जाट के पूरे परिवार को कब्जे में ले लिया।
इतिहास कार बताते हैं कि
खानवां का युद्ध, हल्दी घाटी का युद्ध, पानीपत का युद्ध ये सभी एक-एक दिन में खत्म हो गये थे, परन्तु”तिलपत का युद्ध” तीन दिन तक चला था। इसमें गोकुला जाट और उसके चाचा उदयवीर सिंह को बंदी बना लिया था। इतिहास कार बताते हैं कि”बंदी बनाकर इन्हें कोतवाली के चबूतरे पर लाया गया था। गोकुल सिंह जंजीरों में जकड़ा हुआ शेर था । इनके शरीर का एक-एक अंग काटा गया, पूरी जनता के सामने यह कुकृत्य किया गया,ताकि लोग विद्रोह करने से डरें। मरते दम तक गोकुला जाट ने दासता स्वीकार नहीं की और न ही इस्लाम धर्म स्वीकार किया था। कहते हैं-वीर उदयवीर सिंह की तो औरंगजेब ने खाल खिंचवाई थी,पर उन्होंने धर्म नहीं छोड़ा था।
कहते हैं-गोकुल सिंह इतने शक्तिशाली थे कि, जब कोई अंग कुल्हाड़ी से काटा जाता था तो उसमें से रक्त के फव्वारे छूटते थे। जनता में हाहाकार मचा हुआ था। लेकिन उन तोपों का सामना करने की हिम्मत किसी में न थी।
आगरा में गोकुला का सिर गिरा और इधर मथुरा में, केशवरायजी के मंदिर के पास गोकुला जाट शहीद हो गए।
आगरा में उसी चबूतरे वाले स्थान का नाम आज भी फव्वारे से जाना जाता है। गोकुला जाट और उदयवीर सिंह के बलिदान को आज तक की पीढ़ी भी भुला नहीं पाई, वह आज भी अमर शहीद गोकुल सिंह को नमन करते हुए श्रंद्धाजलि अर्पित करती हूँ।