प्रधानमंत्री आवास योजना में अब हर चौखट पर बिखरी मुस्कान

बृज दर्शन

मथुरा में प्रधानमंत्री आवास योजना से छत विहीन पात्र लोगों की बदली ‘तकदीर और तस्वीर’

बंगाल से राधाकुंड आकर रह रहे दर्जनों कृष्ण भक्त परिवारों का सपना साकार

अब नए आवासों में ये परिवार बना रहे कंठी माला और पोशाक

चंद्र प्रताप सिंह सिकरवार

मथुरा। पक्के मकान की चौखट पर खड़ी कृष्ण भक्त महिला काजल दासी के चेहरे पर अब मुस्कान है। अपने आशियाने की चिंता से बेफिक्र यह महिला मूलत: बंगाल की है। वह दो दशक पहले कोलकाता के गौरांग इलाके से ब्रज में भक्ति के लिए आयी थी। ब्रज के कस्बा राधाकुंड आने के बाद उसे दर-दर भटकना पड़ा। लंबे समय तक परिक्रमा मार्ग में खुले में रहती थी। अब ये महिला जहां रहती है, वहां की तस्वीर और अपनी तकदीर एक साथ बदल चुकी है।
काजल दासी ने दो दशक से अपने खुद के पक्के आशियान में रहने का सपना पाला था। अकेली ये महिला ही नहीं बल्कि पश्चिम बंगाल से राधाकुंड (गोवर्धन) में भक्ति के लिए समय-समय पर आए लगभग 40 परिवारों के लोग खुद के पक्के आशियाने में रहने लगे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महत्वांकाक्षी प्रधानमंत्री आवास योजना इन सभी बंगाली परिवारों के लिए बहुत फलीभूत हुई है।
कस्बा राधाकुंड में बरसाना बाईपास पर हाल ही बसायी गयी उनकी यह बस्ती राधा नगर कालोनी कहलाती है। यहां आधे परिवार बंगाली और आधे ब्रज भाषा बोलते हैं। आवास योजना के ये लाभार्थी परिवार इसी कालोनी में रहते हैं। अकेले कस्बा राधाकुंड में 282 ऐसे परिवार चयनित हुए हैं जिन्हे प्रधानमंत्री आवास योजना का पात्र माना गया है। इस योजना से इन सभी की तकदीर चमकने जा रही है।
चैतन्य महाप्रभु के बंगाल से ब्रज में आने के बाद उनकी परंपरा को निभाते चले आ रहे ये ज्यादातर परिवार गरीब हैं। इनके हाथ में माला रहती और होठों पर राधे-राधे का जाप है। अपनी आजीविका चलाने के लिए ये ज्यादातर तुलसी की कंठी माला बनाते हैं। कुछ परिवार भगवान जी की छोटी पोशाक बना कर अपना गुजारा करते हैं।
12 वर्ष पहले पश्चिम बंगाल से आए बनमाली दास की स्थिति ऐसी नहीं थी कि वह अपने लिए पक्का मकान बनवा पाते। अब सरकार ने मकान बनवाया है। घर में उनकी माता, पत्नी सरस्वती दासी, चार वर्ष की बेटी गायत्री, तीन वर्ष का बेटा गिरधारी है। ये सारा परिवार नए मकान में अब बहुत खुश है। कंठी माला बनाकर पेट भरने वाला ये परिवार अभी तक किराए पर ही रहता था। बनमाली ने तो सपने में भी नहीं सोचा था कि कभी खुद का पक्का मकान बनेगा।
हिंदी समझने से हाथ हिलाकर इंकार करने वाली 60 वर्षीय भक्त कनकदासी को मथुरा के जिला नगरीय विकास अभिकरण (शहरी) डूडा से सरकारी मकान बना है। डूडा के इंजीनियर अजीत सिंह सुंडा व उनकी टीम को देखते ही ये महिला मुस्कराने लगी। उसकी मुस्कराहट बता रही थी कि भारत सरकार द्वारा पक्का मकान बनवाने से वह कितनी गद्गद है। ये महिला डेढ़ दशक से किराया देते-देते परेशान थी। इसका भी सपना साकार हो गया है। ये उत्तर चौबीस परगना जिले से डेढ़ दशक पहले भगवान का भजन करने राधाकुंड आयी थी। पश्चिम बंगाल के नादिया से 12 साल पहले आये देवनाथ अभी तक अपनी बहन के घर में ही रहते थे लेकिन प्रधानमंत्री आवास योजना ने इनके आवास है।
बिल्कुल मीराबाई की तरह हर वक्त भगवान का जाप करने वाली स्रातक युवती कु. सगारिका भी योजना से लाभान्वित हुई है। उसके साथ छोटी बहन अंजली दास भी रहती है।ये दोनों अविवाहित बहनें काफी समय से अपने गुरु बासुदेवदास बाबा के आश्रम में रहती थीं। इन बहनों ने भी नहीं सोचा था कभी मकान बनेगा।
कोलकाता के विवेकानंद दास के लिए भी प्रधानमंत्री आवास योजना फलीभूत साबित हुई है।

अब मन मुताबिक लाभार्थी कर रहे मजबूत कंस्ट्रक्शन

मथुरा। जिला नगरीय विकास अभिकरण (डूडा शहरी) के सीएलटीसी इंजीनियर अजीत सिंह सुंडा बताते हैं कि योजना में लेंटर की छत वाले दो कमरे, एक-एक किचिन, बाथरूम व लैट्रिन के लिए तीन अलग- अलग किश्त में बैंक के माध्यम से धन दिया जाता है। इस राशि से लाभार्थी परिवार अपने हाथों से मजबूत व मन मुताबिक मकान बनाते हैं।

इंजीनियर अजीत सिंह सुंडा का कहना है कि जरूरी शर्तें पूरी करने वाले सभी पात्र लोगों को पक्के आवास योजना का लाभ दिलाने का लक्ष्य है।

ये मेरे सपनों का आशियाना: कनकदासी

मथुरा। प्रधानमंत्री आवास योजना गरीबो के किसी वरदान से कम नही हैं। हर गरीब का अपना पक्का मकान हो, इसकी चिंता सरकार ने की है। प्रधानमंत्री आवास योजना से लाभान्वित होने वाली श्रीमती कनकदासी का कहना है कि ये सपनों का मकान है जो प्रधानमंत्री आवास योजना से प्राप्त हुआ है।

सरकार के बनाये मकानों पर राधा, कृष्ण, मोर के चित्र

मथुरा। प्रधानमंत्री आवास योजना में बन रहे मकानों में कुछ ने सरकारी धन के अलावा अपनी ओर से धन लगा कर मकान का शानदार लुक दिया है। हर मकान के दरवाजे पर शिलापट्ट है जिसें योजना, पात्र का नाम, पात्र का आधार नंबर है। साथ ही ज्यादातर ने मकान के बाहर राधा, कृष्ण, मोर, बांसुरी के चित्र बनवाए हैं।

शहरों में अब नहीं दिखतीं झोंपड़पट्टी

मथुरा। शहर में जिले के दूसरे कस्बों में झोपड़ पट्टियां खत्म हो रही हैं। हर संभव प्रयास है कि 2022 तक पात्र शहरी गरीबों की आवास की आवश्यकता पूरी हो।

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