संतान सुख से वंचित दंपति अपना रहे टेस्ट ट्यूब बेबी सिस्टम

टेक न्यूज़

आईवीएफ डे-
-नि:संतान दम्पति न हों निराश, आईवीएफ से बढ़ी उम्मीद, यह तकनीक एक वरदान
-महिलाओं एवं पुरूषों में कमी के चलते भी बढ़ रही नि:संतानता की समस्या


मथुरा। लंबे समय से संतान सुख से वंचित दंपति अब टेस्ट ट्यूब बेबी तकनीक अपना रहे हैं। इससे काफी परिवार को खुशी मिल चुकी है। जनपद मेंं पांच सैकड़ा से अधिक टेस्ट ट्यूब बेबी घूम रहे हैं। इनमें कुछ जुड़वा बच्चे भी हैं। यह तकनीक एक वरदान है। वहीं कुछ महिलाओं एवं पुरूषों में क मी के चलते नि:संतानता की समस्या भी बढ़ रही है।
आईवीएफ एक प्रजनन उपचार यानि फर्टिलिटी ट्रीटमेंट है जो कि उन लोगों के लिए बना हैं जो बच्चा पैदा करने में असमर्थ होते हैं। इस प्रक्रिया से बांझ दम्पत्तियों का उपचार किया जाता है। आईवीएफ के द्वारा काफी नि:संतान दम्पत्तियों को अपनी संतान होने का सुख मिला है।
स्त्री रोग विशेषज्ञ डा.गीता मेहता, डा.वर्षा तिवारी, डा.आरती गुप्ता, डा.अनु गोयल, डा.नूपुर मेहता आदि चिकित्सकों का कहना है कि आईवीएफ एक अच्छी तकनीक है। इसको दंपति अपना रहे हैं और संतान सुख ले रहे हैं। प्रयोगशाला में पुरुष के शुक्राणु एवं महिला के अंडाणु को मिलाकर भ्रूूूण बनाया जाता है। उस भ्रूूूण को कृत्रिम तरीके से जरूरतमंद महिला के गर्भाशय में प्रत्यारोपित किया जाता है। इससे पूर्व दंपति के टेस्ट कराए जाते हैं। रिपोर्ट एवं दंपति से बातचीत के बाद उपचार शुरू किया जाता है।

महिलाओं में अंडों की मात्रा होती सीमित
मथुरा। महिलाओं में अंडों की मात्रा सीमित होती है जो हर महीने कम होती रहती है। 35 वर्ष की उम्र के बाद अंडों की गुणवत्ता एवं संख्या में कमी आने लगती है। ऐसा विशेषज्ञों का मानना है।

शिशु का विकास होता मां की कोख में
मथुरा। प्रजनन से लेकर शिशु जन्म तक की पूरी प्रक्रिया प्राकृतिक रूप से ही होती है। शिशु का विकास मां की कोख में होता है, मां के आहार और प्रतिक्रियाओं पर बच्चे का विकास निर्भर करता है।

-यह होती है गर्भधारण प्रक्रिया
मथुरा। इस प्रक्रिया में स्त्री के अंडे (एग) और पुरुष के स्पर्म की आवश्यकता होती है। यह दोनों मिलकर शिशु उत्पादन की शुरूआती स्थिति का निर्माण करते हैं जिसे भ्रूण कहा जाता है। यदि स्त्री के अंडे, पुरुष के स्पर्म या दोनों में ही कोई परेशानी होती है तो यह बांझपन माना जाता है। साथ ही गर्भधारण नहीं हो पाता है। यह वो स्थिति है जब बांझपन के इलाज की आवश्यकता होती है और आई वी एफ तब सामने आता है। प्रक्रिया में पुरुष के सीमेन को लैब में साफ़ किया जाता है। फिर सक्रिय (अच्छे) और असक्रिय (बेकार) शुक्राणुओं को अलग किया जाता हैं। महिला के शरीर में से इंजेक्शन के ज़रिए अंडे को बाहर निकालकर फ्रीज किया जाता है।

डोनर आई वी एफ प्रक्रिया
मथुरा। अगर दंपत्ति के शुक्राणु या अंडों की गुणवत्ता ख़राब हो तो ऐसे में डोनर एग या स्पर्म और डोनर एम्ब्र्यो का प्रयोग किया जाता है। डोनर की उन मामलो में सलाह दी जाती है जिनमें साथी को आनुवांशिक रूप से कोई रोग हो। महिलाओं में ओवेरियन रिज़र्व फेलियर हो तब डोनर एग की ज़रूरत होती है।

प्रेग्नेंसी न होने के कई कारण
मथुरा। डा.वर्षा तिवारी एवं डा.आरती गुप्ता के अनुसार प्रेग्नेंसी न होने का कारण बच्चेदानी में परेशानी,नलें ब्लॉक,अंडे न बनना, हारमोनल प्रॉब्लम संक्रमण आदि कारण हैं। पुरूषों में स्पर्म कम मात्रा में बनना,गुणवत्ता सही न होना,लाइफ स्टाइल में चेंज,तनाव के अलावा शराब, धूम्रपान आदि कारण हैं। शादी में देरी भी एक कारण हो सकता है। कभी-कभी दोनों ठीक होते हैं और परेशानी पता नही चल पाती है। ओपीडी में इस प्रकार के मरीज आते रहते हैं। उपचार से लाभ न मिलने पर आईवीएफ की सलाह भी दी जाती है।

जनपद में एक और खुल सकता है आईवीएफ सेंटर
मथुरा। जनपद में आईवीएफ के दो सेंटर संचालित हैं। गोपीकृष्ण नर्सिंग होम एवं मेहता नर्सिंग होम में यह सुविधा है। यहां मरीजों का उपचार हो रहा है,जोकि जनपद के लिए उपलब्धि है। जनपद में एक-दो और आईवीएफ सेंटर खुलने की उम्मीद है। अब नि:संतान दम्पतियों को बाहर उपचार कराने की जरूरत नहीं पड़ेगी। हांलाकि काफी मरीज उपचार कराने बाहर जा रहे हैं।

पांच सैकड़ा टेस्ट ट्यूब बेबी घूम रहे
मथुरा। चिकित्सकों की माने तो जनपद में करीब पांच सौ टेस्ट ट्यूब बेबी होंगे। संतान सुख पाकर दम्पति एवं परिजन खुश हैं। परेशान लोगों को यह यही सलाह देते हैं कि आईवीएफ प्रक्रिया अपनाए और देरी न करें।

कब करा सकते हैं आईवीएफ-
-फैलोपियन ट्यूब खराब होने पर
-पुरूषों में शुक्राणु की संख्या में कमी
-स्पर्म का कम गतिशील होना आदि समस्या होने पर
-महिलाओं में अन्य समस्या होने पर


-नि:संतान दम्पति के लिए आईवीएफ अच्छी सुविधा है। एक-दो साल के भीतर यदि प्रेग्नेंसी न हो तो दम्पति को इस प्रक्रिया को अपनाना चाहिए। इससे संतान सुख प्राप्त किया जा सकता है। अच्छे सेंटर पर ही उपचार कराएं।
-डा. गौरव भारद्वाज, उपाध्यक्ष आईएमए

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