Chandra pratap Singh sikarwar
नई दिल्ली/लखनऊ/मथुरा। स्व. अजित सिंह जी आज हमारे बीच नहीं रहे। जिस तरह से कृषि से जुड़ी 70 फीसदी जनता की पहचान आज किसान के रूप में है, वैसे ही उनकी पहचान देश के सर्वमान्य और निर्विवाद किसान नेता के रूप में थी। स्व. चरण सिंह के बाद वह ही एक मात्र ऐसे राजनेता थे, जिन्हे तीन दशक से देश के किसान अपना नेता मानते रहे।
देश का किसान आज अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है। ऐसे में इस सबसे बड़े वर्ग को उनके मार्गदर्शन की बड़ी जरूरत थी, लेकिन भगवान को कुछ और ही मंजूर था।
साफ-सुथरी राजनीति—
स्व. अजित सिंह ने जीवन भर साफ सुथरी राजनीति की। उन पर कभी कोई अंगुली नहीं उठा सका। जब तमाम नेता घोटालों में फंसते रहे और उनके खिलाफ एक जांच भी नहीं बैठी।
धोखा दिया नहीं, लेकिन जीवन भर खाया
स्व. अजित सिंह ने कभी किसी को धोखा नहीं दिया बल्कि वह जीवन भर अपनों से धोखा खाते रहे। दो- ढाई दशक पहले जब झूठ, फरेब और स्वार्थ की राजनीति का दौर शुरू हुआ, उसी समय से तमाम स्वार्थी नेता उनका साथ छोड़ते चले गए। ये वे लोग थे, जिनका राजनीतिक कैरियर स्व. अजित सिंह ने बनाया था। इससे वह थोड़े से कमजोर जरूर हुए लेकिन हिम्मत नहीं हारी और न सिद्धान्तों से कभी समझौता किया। हकीकत तो यह है कि जो लोग उनसे दूर होकर भाजपा, कांग्रेस या अन्य दलों में चले गए, उनमें से अनेक लोग बाद में भी स्व अजित को अपना संरक्षक मानते रहे।
सदैव विवादों से दूर रहे
वह अपने राजनीतिक जीवन में विवादों से शुरू से ही दूर रहे। हां, कांग्रेस व भाजपा की तरह अन्य दलों की “गठबंधन मजबूरी” की तरह ही उनको भी समय-समय पर गठबंधन करने पड़े। इससे उनकी राजनीतिक आलोचना जरूर हुई लेकिन व्यक्तिगत आलोचना करने की किसी की हिम्मत नहीं हुई।
आज भी खुद का आवास नहीं
उनके सरल जीवन की यही मिसाल है कि आज भी इस परिवार के पास दिल्ली में अपना खुद का आवास नहीं है। ये परिवार प्रारंभ से ही आर्य समाज का अनुयायी रहा है।
स्व. अजित सिंह ने जीवन भर किसानों के हित में उनके उत्थान व सम्मान के लिए वैचारिक और धरातल पर लड़ाईंयां लड़ीं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बागपत से सात बार सांसद रहे। पीवी नरसिंहराव सरकार में कृषि व खाद्य मंत्री और मनमोहन सिंह सरकार में केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री रहे। बेटा जयंत चौधरी 15वीं लोकसभा में मथुरा से सांसद रहे।
आईआईटियन थे, यूएसए में नौकरी की
उन्होंने आईआईटी खड़गपुर से कंप्यूटर साइंस में बीटेक की पढ़ाई कर यूएसए में कंप्यूटर इंजीनियरिंग की नौकरी की। इलिनॉइस इंस्टीट्यूट आॅफ टेक्नोलॉजी (आईबीएम) से मास्टर की डिग्री हासिल करने वाले वह पहले भारतीय थे।
अजित सिंह के साथ मेरे संस्मरण
निजी तौर पर स्व.अजित सिंह का निधन मेरे लिए बड़ी क्षति है। उनसे जुड़े तमाम संस्करण हैं। उनके हर जिले में गैर राजनैतिक लोग भी मित्र थे। उनसे अपनी पार्टी के लिए अक्सर वह फीड बैक लिया करते थे। उनमें मथुरा से मैं भी एक था।
वर्ष 2002 के विधानसभा चुनाव से पहले अक्सर रात आठ बजे उनका फोन आता था। फोन पर वह मुझसे टिकटार्थियों के बारे में फीडबैक लिया करते थे। मैं उस समय अमर उजाला मथुरा में ब्यूरो चीफ था। समाचार लेखन के ‘पीक समय’ में यद्यपि वह फोन अखरता था लेकिन उनसे जो संबंध थे, इस कारण उनकी बात सुनकर उनके सवालों का जबाव देना लाजमी हुआ करता था। वह मेरी बात पर विश्वास भी कर लिया करते थे।
जयंत जब मथुरा से सांसद चुने गए थे, तब शुरू में मुझसे एकाध बार पूछा था कि “जयंत के बारे में मथुरा के लोगों की कैसी धारणा है” ?।
पिछले 2017 के चुनाव से पहले उनके बंगले पर पश्चिमी यूपी के टिकटार्थियों व उनके हजारों समर्थकों का मेला सा लगा था। मुझे एक टिकट की सिफारिश में जाना पड़ा। उस दिन उन्होंने पार्टी के किसी विधायक, पूर्व विधायक या जिलाध्यक्ष को अंदर नहीं बुलाया। संयोग से जैसे ही रिसेप्शन से मेरा नाम अंदर गया तो स्व. अजित सिंह जी ने मुझे अंदर बुलवा लिया। आधा घंटे बाद मैं जैसे ही आवास से बाहर निकला तो मथुरा, हाथरस व आगरा के कई परिचित टिकटार्थी वह उनके समर्थक मेरे पीछे लग गए। वे परिचित रालोद नेता अपनी टिकट के लिए सिफारिश करने की बात कहने लगे। मैं गैर राजनीतिक व्यक्ति जो ठहरा, उस समय उनसे बचकर निकलना मुश्किल हो गया था।
मैं मथुरा के अलावा अमर उजाला आगरा में भी रहा। दोनों जिलों में जब भी अजित सिंह कोई प्रेस कांफ्रेस करते, तब पत्रकारों की कतार में उनकी नजरें मुझे खोजती थीं।
सपा के साथ यूपी में रालोद के साथ गठबंधन की सरकार थी। यूपी का सिंचाई विभाग रालोद के पास था। रविवार के दिन एक रिश्तेदार सिंचाई इंजीनियर मुझे जबरन तुगलक रोड वाले आवास पर लिवा ले गए। रविवार के दिन अजित पब्लिक से बहुत कम मिलते थे। तमाम बडे नेता बगैर मिले लौट रहे थे लेकिन मेरी जिद के सामने वह बाहर निकले और अपनेपन में मुझ पर बहुत गुस्सा हुए। बोले- ‘सिकरवार मैं आज सन डे को छुट्टी मनाता हूं। तुम मथुरा से आज यहां क्यों आ गए?’ अभी मैं साउथ के एक एमपी तक से नहीं मिला। जरा सी देर बाद ही उनका गुस्सा शांत हो गया। मेरे साथ गए सिंचाई इंजीनियर की समस्या को सुन कर उसका हल भी निकाला।
एक बार वह मेरे बगैर आग्रह के ही कस्बा बाजना से सादाबाद की चुनावी सभा में हैलीकाप्टर में बिठा कर ले गए। ऐसे एक नहीं अनेक उनसे जुड़े संस्मरण हैं।
उनके निधन पर हम सभी खासकर देश के किसान आज शोकमग्न हैं। उन्हें शत शत नमन।
ऊं शांति, ऊं शांति, ऊं शांति…..