यूपी की नक्सल समस्या का ‘तोड़’ उस दूरदर्शी मसीहा ने 65 साल पहले खोज निकाला था अन्यथा ये भी आज …

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चंद्र प्रताप सिंह सिकरवार

मथुरा। छत्तीसगढ़, बिहार, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल और उड़ीसा आदि राज्यों में कल की जैसी हिंसक नक्सल घटनाएं अक्सर होती रहती हैं। इनमें जमीन के स्वामित्व की जो असमानताएं हैं, वही समस्या की जड़ है। जो भूमि के अधिकार से विहीन हैं, वही नक्सली हो गये। ये सभी कम्यूनिस्ट विचार के लोग हैं और जंगल में रहते हैं। उनका मानना है कि जैसे जंगल रहे वैसे ही जेल में, क्या फर्क पड़ता है।
इन राज्यों के गांवों के एक-एक जमीदार के पास 500-500 एकड़ जमीन है, लेकिन उनकी ही जमीन को बंटाई पर लेकर खेती करने वाले तमाम परिवारों के नाम एक इंच भी जमीन नहीं है।
आजादी के बाद यह समस्या सिर्फ यूपी में ही दूर हुई। तत्कालीन कृषि और गृह मंत्री स्व. चरण सिंह ने रातों-रात ”जमींदारी उन्मूलन अधिनियम 1956″ बनाकर भूमिहीन लोगों को उन खेतों का मालिक बना दिया, जिन्हे वे और उनके पुरखे बंटाई पर करते चले आ रहे थे।
इस जमीदारी कानून से फायदा उठाने वाले ज्यादातर दलित, पिछड़े और अनुसूचित जनजाति के लोग थे। वे खेतों के असली मालिक हो गए। खासकर ठाकुर, जाट, अहीर, गुर्जर व पूर्वांचल के सवर्ण जातियों के जमीदार मुंह ताकते रह गए। सभी ने चौधरी चरण सिंह के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था, लेकिन दलितों की भलाई के लिए वह यूपी के सवर्ण और दबंग जमीदारों से कतई नहीं डरे। दलितों को न्याय दिलाने वाले सबसे पहले यदि कोई नेता थे तो वह चरण सिंह ही थे। आज भी हम अपने गांवों में देखते हैं कि दलितों के पास ज्यादा नहीं तो थोड़ी बहुत खेतिहर जमीन है, जो उन्हें स्व चरण सिंह ने ही दिलवाई थी।
उस जमाने में पटवारी बहुत ताकतवर कर्मचारी हुआ करते थे। उन्होंने चौधरी चरण सिंह की नाक में दम कर दिया था। वे जमीदारों से मिल गए थे। इस पर गृह मंत्री के नाते स्व चरण सिंह ने रातों-रात पूरे प्रदेश में पटवारियों को बर्खास्त कर दिया और लेखपालों की नई भर्ती कर ली।
“यूपी जमीदारी उन्मूलन अधिनियम” के परिणाम अब हमें देखने को मिल रहे हैं। उत्तर प्रदेश में नक्सलवाद का नामो निशान नहीं है। यदि वह जमीदारी विनाश कानून नहीं बना होता तो आज उत्तर प्रदेश भी नक्सली आग से अधिक रहा होता।
उस वक्त नेहरु जी ने यूपी के इस कानून को क्रांतिकारी बताया था जबकि सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस वाई डी चंद्रचूड़ (वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट में जज चंद्रचूड़ के पिता) ने अपने एक फैसले में चौधरी चरण सिंह के नाम का उल्लेख कर जमीदारी कानून को कृषि के मामले में देश का सबसे बड़ा क्रांतिकारी निर्णय लिखा था। वर्ष 2014 में बड़ौत की चुनावी जनसभा में नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण में इस जमीदारी कानून का उल्लेख कर कहा था कि महान किसान नेता स्व चरण सिंह द्वारा बनाए कृषि कानूनों से देश को नयी दिशा मिली थी। हम कल्पना करें यदि जमीदारी विनाश कानून नहीं होता तो खेतों में काम करने वाले जमीदारों के वही बंटाईदार आज नक्सली होते और वर्ग संघर्ष की स्थिति बनी होती।
सवाल है कि अन्य राज्यों में यह कानून क्यों नहीं बनाया? इसके पीछे जमीदारों का वर्चस्व था। जिन राज्यों में यह समस्या है, उन सरकारों में वहां के जमीदारों की पकड़ थी। तमाम जमीदार मंत्री व विधायक थे। उन्होंने अपने राज्यों में यूपी तरह जमीदारी के खात्मे का कानून नहीं बनने दिया था। चौधरी चरण सिंह यूपी में अपने राजनैतिक साथियों और अपनी बिरादरी जाट व ठाकुरों के बुरे बन गये किंतु भूमिहीनों को जमीन दिलाकर ही माने। यह भी एक विडंबना है कि भूमिहीन दलितों को स्व चरण सिंह खेतों का मालिक बनाया लेकिन वही दलित आज उन्हें अपना नेता नहीं मानते….

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