-जीएलए विश्वविद्यालय में अवादा फाउंडेशन ने की उत्कृष्ट शिक्षा अभियान की शुरुआत
-आनंदमयी जीवन से सफलता मिलती है, लेकिन जरूरी नहीं कि सफलता से आनंद मिल: डा. अरूण
मथुरा। जीएलए विश्वविद्यालय, मथुरा में अवादा फाउंडेशन के तत्वावधान में उत्कृष्ट शिक्षा अभियान की शुरूआत की गयी। हैप्पीनेस
इंजीनियर और मोटीवेशनल स्पीकर डॉ. अरूण भारद्वाज ने विद्यार्थियों को अपने सपनों को उड़ान देकर चैंपियन बनने की कला को
विभिन्न गतिविधियों और प्रोजेक्टर प्रेजेंटेशन के साथ प्रस्तुत किया। विद्यार्थियों की ओर से पूछे गए सवालों का जवाब देकर उनकी शंकाओं को भी दूर किया।
डॉ. अरूण भारद्वाज ने कहा कि असफलता, सफलता का विलोम नहीं है, बल्कि सफलता की पहली सीढ़ी है। करियर चुनने एवं जीवन को सफल बनाने के लिए जरूरी है अपने अंदर की ताकत व कमजोरी को पहचानना। छोटी उम्र में ही अगर कोई काम
करने की इच्छाशक्ति जागे तो उसको नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। उस काम में जुट जाना चाहिए। अक्सर ऐसा होता है कि वही काम आपको अलग पहचान दिला देता है। इसलिए लक्ष्य तय करना बहुत जरूरी है। बिना लक्ष्य तय किए कोई भी काम करना दिशाविहीन ही रहता है। लक्ष्य तय करने के लिए क्या-क्या करना चाहिए? किन बिदुओं पर ध्यान देना चाहिए? इसके बारे में भी विस्तार से बताया। विद्यार्थियांे को और विस्तार से बताने से पहले उन्होंने अपने जीवन की विफलताओं के अनुभव को साझा किया और बताया कि वे उन विफलताओं से सीख लेकर जीवन में सफलता की सीढ़ियों को कैसे चढें।
उन्होंने असफलता के बाद सफल होने वाले कई उद्यमियों और खिलाड़ियों के बारे में बताते हुए पीपीटी के माध्यम से एपीजे अब्दुल कलाम, रतन टाटा, लता मंगेषकर, सचिन तेंदुलकर, नीरज चोपड़ा आदि सफलतम व्यक्तियों के जीवन से भी परिचय कराया। इसके बाद उन्होंने भारतीय संस्कृति की अच्छाईयों की तरफ विद्यार्थियों का ध्यान दिलाया और अपनी कहानियों के द्वारा संस्कृति पर गौरव का अनुभव कराया। इसके अतिरिक्त उन्होंने जीवन में नैतिक मूल्यों का महत्व बताते हुए नमस्ते का भावनात्मक अर्थ भी छात्रों से
साझा किया। उन्होंने विद्यार्थियों के अंदर जुनून पैदा करने के लिए कई जीवन से जुड़ी प्रेरणादायक वीडियो भी दिखाए।
दूसरे दिन विश्वविद्यालय के शिक्षकों से रूबरू होते हुए डॉ. भारद्वाज ने कहा कि एक शिक्षक के द्वारा विद्यार्थी को प्रदान किए जाने वाला ज्ञान ऐसा प्रभावी और सरल होना चाहिए, जिससे विद्यार्थी उस ज्ञान के माध्यम से कुछ सीखने, जानने और उस पर अमल करने में सफल रहें। इसके बाद शिक्षक और विद्यार्थी का ऐसा संबंध होना चाहिए कि कोई विद्यार्थी अपने गुरू से कोई प्रष्न पूछने में हिचकिचाहट महसूस न करे। क्योंकि आचार्य शब्द आचरण से जुड़ा हुआ है। यही आचरण तो विद्यार्थी को बदलाव की राह पर चलने को प्रेरित करता है। शिक्षक का दायित्व केवल छात्रों को विशय ज्ञान देना ही नहीं, बल्कि उनके जीवन को परिवर्तित करने
का एक स्त्रोत भी है। अंत में उन्होंने एक शेर के माध्यम से कहा कि आनंदमयी जीवन से सफलता मिलती है, लेकिन जरूरी नहीं कि सफलता से आनंद मिले।
अवादा फाउंडेशन की ट्रस्टी ऋतु पटवारी ने फाउंडेशन के बारे में शिक्षक और विद्यार्थियों को जानकारी देते हुए कहा कि कोरोना संक्रमण काल और लॉकडाउन में हजारों लोगों तक मदद पहुंचा कर अवादा फाउंडेशन ने सक्रिय भूमिका निभाई थी। अब राष्ट्र निर्माण में भूमिका और संस्कारवान शिक्षा के लिए जागृत कर रही है। जिसके लिए उच्च षिक्षण संस्थान और विद्यालयों में निरंतर व्याख्यान आयोजित किए जा रहे हैं। कार्यक्रम में फाउंडेशन के चेयरमैन विनीत मित्तल की इस धारणा का उल्लेख किया कि अपने अच्छे कार्यों के माध्यम से ही मनुष्य अपने माता पिता, समाज एवं संस्कृति, संतों एवं ऋषि मुनियों एवं प्रकृति का ऋण चुका सकता
है।
प्रतिकुलपति प्रो. अनूप कुमार गुप्ता ने कहा किअवादा फाउंडेशन द्वारा शिक्षकों और छात्रों के लिए आयोजित दोनों ही सेशन्स प्रेरणादायक रहे। उन्होंने कहा कि एक अच्छा शिक्षक सिर्फ पढ़ाता है। उससे बेहतर शिक्षक अपनी बात को आचरण और व्यवहार में
अमल करता है और सर्वश्रेष्ठ शिक्षक प्रेरित करता है। डॉ. अरुण भारद्वाज निश्चित रूप से श्रेष्ठ शिक्षक की श्रेणी में आते हैं। उन्होंने अपने विशेष ज्ञान रूपी पंखुड़ियों को उदारतापूर्वक छात्रों और शिक्षकों को प्रदान किया। इस दौरान ऐसा लगा मानो उनके पास ज्ञान का असीमित भंडार है। अंत में प्रो. गुप्ता ने अवादा फाउंडेषन की कॉर्डिनेटर डॉ. छवि अंकिता एवं टंस्टी रितु पटवारी को
सम्मानित किया और विष्वविद्यालय में आयोजित उत्कृश्ट षिक्षा अभियान कार्यक्रम की सराहना की। कार्यक्रम का संचालन अंग्रेजी विभाग की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. दिव्या गुप्ता ने किया।